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में तत्पर, सभी सुसाधुओं का उपासक और संसार के स्वरूप का जानने वाला होता है । श्रावक का कर्त्तव्य है कि अभक्ष्य भक्षण का सर्व प्रथम त्याग करे । अभक्ष्य का स्वरूप इस प्रकार है
तीर्थङ्कर चरित्र
१ मदिरा २ मांस ३ मक्खन ४ मधु ५ पाँच प्रकार के उदुम्बर (बड़, पीपल, गुलर, प्लक्ष = पीपल की जाति का वृक्ष और काकोदुम्बर) १० अनन्तकाय ( कन्दमूल ) ११ अज्ञातफल १२ रात्रि भोजन आदि त्याग तो करना ही चाहिए ।
१ जिस प्रकार पुरुष चतुर होते हुए भी दुर्भाग्य के उदय से लक्ष्मी से वंचित रहता है उसी प्रकार जो मदिरापान करता है, उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है। जिसका चित्त मदिरापान से विकृत और परवश हो गया है, ऐसा पापी पुरुष, माता को पत्नी और पत्नी को माता मान लेता है । उसका चित्त चलित हो जाने से अपने पराये का विवेक नहीं रहता । वह दरिद्र होते हुए भी सम्पन्न होने का अभिमान करने लगता है, सेवक होता हुआ भी स्वामीपन का डोल करता है और स्वामी को किकर के समान मानता है । मद्यप मनुष्क मुर्दे के समान बाजार में गिर जाता है । उसके मुँह में कुत्ते मूतते हैं मद्यपान के रस में गृद्ध हुआ मनुष्य नग्न हो जाता है और निर्लज्ज हो कर अपना गुप्त अभिप्राय प्रकट करता है । जिस प्रकार उत्तम प्रकार का चित्र, काजल लगा देने से बिगड़ कर नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार मदिरापान से मनुष्य के शरीर की कान्ति, कीर्ति, मति और लक्ष्मी चले जाते हैं । शराबी मनुष्य इस प्रकार नाचता है, जैसे भूत लगा हुआ मनुष्य नाचता है । कभी वह शोकाकुल हो कर रोता है, कभी पृथ्वी पर इस प्रकार लोटता है, जैसे-दाहज्वर से पीड़ित व्यक्ति लोटता हो । मदिरा, शरीर पर विष का सा प्रभाव डाल कर गला देती है । इन्द्रियों को कमजोर करती है और मूर्च्छा उत्पन्न कर देती है । जिस प्रकार अग्नि की एक चिनगारी से घास के भारी गंज जल कर भस्म हो जाते हैं, उसी प्रकार मद्यपान से विवेक, संयम, ज्ञान, सत्य, शौच, दया और क्षमादि सद्गुण विलीन हो जाते हैं मदिरा के रस में बहुत से जीव उत्पन्न होते हैं । इसलिए हिंसा के पाप से डरने वाले पुरुषों को मदिरापान नहीं करना चाहिए। मद्यय, सत्य को असत्य, असत्य को सत्य, लिये हुए को नहीं लिया और नहीं लिए हुए को लिया, किये हुए को नहीं किया और नहीं किये काम को किया हुआ कहता है और राज्य आदि की झूठी निन्दा कर के बकता रहता है । मूढमति वाला चर वध, बन्धन आदि का भय छोड़ कर घर, बाहर या रास्ते में जहाँ कहीं पराया धन देखता है, वहाँ लेने को तत्पर हो जाता है । मद्यपान से उन्मत्त हुआ मनुष्य, बालिका, युवती, वृद्धा, ब्राह्मणी अथवा चाण्डाली ऐसी किसी भी जाति की परस्त्री
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