________________
तीर्थंङ्कर चरित्र
अश्रुपात कर रहे हैं और अन्य जन भी गंभीर हैं । यह समारोह आगे बढ़ कर उग्रसेनजी के भवन के समीप पहुँचता है । अपने प्राणेश्वर की निष्क्रमण-यात्रा देखने के लिए राजमती गवाक्ष में पहुँचती है । उन्हें देख कर उसका सुसुप्त प्रेम पुनः जाग्रत हो जाता है और वह मूच्छित हो कर गिर पड़ती है ।
निष्क्रमण-यात्रा उज्जयंत पर्वत की तलहटी के सहस्राम्र वन उद्यान में पहुँची । भ. अरिष्टनेमिजी, अपनी शिविका से उतर कर अशोक वृक्ष के नीचे खड़े हुए और अपने शरीर पर से सभी आभूषण उतार दिये । इन्द्र ने वे आभूषण ले कर श्रीकृष्ण को दिये । समय दिन का पूर्वार्द्ध था और प्रभु के बेले का तप था। प्रभु ने वस्त्र भी उतार दिये और अपने केशों का पंच- मुष्टि लोच किया । शकेन्द्र ने प्रभु के कन्धे पर देवदृष्य रखा । प्रभु के लुंचित केशों को शक्रेन्द्र ने अपने उत्तरीय में ले कर क्षीर-समुद्र में प्रक्षिप्त किये । अब भगवान् संयम की प्रतिज्ञा कर रहे थे । देवेन्द्र की आज्ञा से वादिन्त्रादि का नाद एवं कोलाहल रुक गया । फिर भगवान् ने सिद्ध भगवान् की साक्षी से सर्व सावद्य-योग के त्याग रूप सामायिक चारित्र की प्रतिज्ञा करते हुए कहा ;" मै जीवनपर्यंत सभी प्रकार के करता हूँ ।"
सावद्य-योगों का तीन करण तीन योग से त्याग
चारित्र ग्रहण करते ही प्रभु को मनःपर्यंव ज्ञान उत्पन्न हुआ । प्रभु के साथ एक हजार पुरुषों ने प्रव्रज्या ग्रहण की। जिस समय प्रभु ने प्रव्रज्या ग्रहण की, उस समय तीनों लोक में उद्योत हुआ । अन्धकार पूरित नरकावासों भी क्षण भर के लिए उद्यांत हुआ
और नारक जीवों ने सुख का अनुभव किया ।
भगवान् के प्रव्रजित होने पर त्रिखण्डाधिपति राज राजेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र ने आशीर्वाद देते हुए कहा; --
" हे दमीश्वर ! आप शीघ्र ही अपने मनोरथ को प्राप्त करें और सम्यग् ज्ञानदर्शन-चारित्र और तप तथा क्षांति-मुक्ति के मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ते रहें ।" प्रभु के प्रव्रजित होने के बाद सभी देव और मनुष्य, भगवान् को वन्दन कर के स्वस्थान लौट गए ।
५९६
कककककक
दूसरे दिन भगवान् ने उद्यान से निकल कर गोष्ठ में 'वरदत्त' नामक ब्राह्मण के यहाँ अपने बेले के तप का, परमान्न से पारणा किया । देवों ने - " अहोदानं, अहोदानं " का दिव्य घोष किया, दुंदुभि-नाद किया, सुगन्धित जल, पुष्प, दिव्य वस्त्र और स्वर्ण की वर्षा की और वरदत्त के महादान की प्रशंसा करते हुए उसे धन्यवाद दिया ।
Jain Education International
ककककककककककककककककक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org