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________________ राजमती को अमंगल की आशंका उधर राजमती भी पूर्ण रूप से सुसज्ज हो कर सहेलियों के झुण्ड में बैठी थी। सखियाँ उससे हंसी-ठठोली कर रही थी । ज्योंही बारात को वाद्यध्वनि कानों में पड़ी कि सखियाँ राजमती को बरबस घसीटती हुई भवन के ऊपर की अट्टालिका में ले-आई । राजमती का हृदय हर्षातिरेक से परिपूर्ण था । अरिष्टनेमि जैसे अलौकिक प्रतिभा के धनी से सम्बन्ध स्थापित होने से वह अपने-आपको परम सौभाग्यशालिनी मान रही थी। ज्योंही उसकी दृष्टि वरराज अरिष्टनेमि पर पड़ी कि उसका प्रत्येक रोम पुलकित हो उठा। ऐसा त्रैलोक्य-सिरोमणि वर पा कर वह अपने को धन्य मानने लगी । सखी-वृन्द भी राजमती के भाग्य की सराहना करने लगा। राजमती का हर्षातिरेक उमड़ ही रहा था कि अचानक उसकी दाहिनी आँख और दाहिनी बाहु फड़की । वह आशंकित हो उठी। उसके मुख-चन्द्र की प्रफुल्लता लुप्त हो कर म्लानता छा गई । वह उदास हो कर चिन्तामग्न हो गई । अचानक राजमती को उदास देख कर सखियें भी स्तब्ध हो कर पूछने लगी;--"क्यों, पूर्ण-चन्द्र के समान प्रफुल्ल मुख पर यह म्लानता की बदली कसे छा गई ? अकारण ही कौन सी दुःशंका-पापिनी तुम्हारे कोमल-हृदय में घुस गई--इस परम सौभाग्य के फूलने की घड़ी में ?' "बहिन ! मुझे सन्देह है कि मैं इतने महान् सौभाग्य की प्राप्ति के योग्य नहीं हूँ। दाहिनी-आँख और भुजा का स्वाभाविक चलन मुझे किसी अघटित-घटना की सूचना दे रहे हैं । लगता है कि कोई बाधा शीघ्र ही उपस्थित होने वाली है"--राजमती ने हृदयगत संताप सखियों को बताया। शांतं पापं, शांतं पापं"--सभी सखियाँ बोल उठी और राजमती को धीरज बंधाती हुई कहने लगी--" सखी ! चिन्ता मत कर । अपनी कुलदेवी का तुम और हम सब स्मरण करें। यदि कोई बाधा होगी भी, तो वे दूर कर देंगी । तू धीरज रख । अब देर ही कितनी है ? मन को शान्त कर के कुलदेवी का स्मरण कर।" । पशुओं को अभयदान + + + वरराज लौटगए बारात आगे बढ़ी । पर्वत के समान ऊँचे गजराज पर आरूढ़ वरराज अरिष्टनेमिजी की दृष्टि, विशाल बाड़ों और पिंजरों में घिरे हुए पशुओं पर पड़ी। बहुत बड़ी संख्या में संग्रहित वे प्राणी भयाक्रांत हो कर चित्कार कर रहे थे। मृत्यु-भय से भयभीत थे, फिर भी उनकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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