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को अभयदान xxx वरराज लौटगए
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आशा किसी दयावान् के प्रति लगी हुई थी। वे इसो आशा से जोवन की भीख मांगते हुए, एक स्वर से पुकार कर रहे थे। उनकी पुकार, बारात के सदस्यों के विनोदपूर्ण वातावरण को लाँव कर, वरराज अरिष्टनेमि के कानों तक पहुँची । उन्होंने देखा-राज-मार्ग के दोनों ओर प्राणियों से भरे हुए विशाल बाड़े और अगणित पिंजरे रखे हुए है, जिनमें फंसे, बंधे और अवरुद्ध प्राणी भयभीत हो कर चिल्ला रहे हैं । उन्होंने महावत से कहा
"इन पशुओं को बन्दी क्यों बनाया गया है ? ये सभी सुखपूर्वक वन में विचरने वाले प्राणी हैं। इन्हें भी सुख प्रिय और दुःख अप्रिय है। ये बिचारे भयभीत और दुःखी दिखाई दे रहे हैं । क्या कारण है इन्हें बन्धन में डाल कर दुःखी करने का ?"
__"स्वामिन् ! ये सभी प्राणी आपकी इस बारात के भोजन के लिए हैं । आपका लग्न होते ही ये भेड़ें, बकरे, मृग, शशक, साँभर आदि पशु और पक्षीगण मारे जावेंगे और इनके मांस से खाद्यपदार्थ बनाये जा कर बारातियों को खिलाया जायगा । मृत्यु-भय से भयभीत हो कर ये चिल्ला रहे हैं।"
" सारथि ! मुझे उन बाड़ों के पास ले चलो'-कुमार ने कहा ।
"पन्न वरघोड़े का क्रम बिगड़ जायगा और आगे बढ़ रही बारात में बाधा उत्पन्न हो जायगी"--सारथि ने निवेदन किया।
“चिन्ता मत करो गजपाल ! मुझे तुरन्त वहां ले चलो।"
वरराज ने पशुओं का समूह देखा । सभी पशु-पक्षी उन्हीं की ओर देख कर करुणाजनक पुकार कर रहे थे । कुमार का हृदय दया से भर गया। उन्होंने कहा ;-- ___ " जाओ सारथि ! इनके बन्धन तोड़ कर स्वतन्त्र कर दो।"
सारथि ने आज्ञा का पालन किका । सभी जीवों के बन्धन खोल दिये गये। अभयदान पा कर वे सभी जीव हर्षोन्मत्त हो, वन में चले गए, पक्षी उड़ गए। उधर पशु-पक्षी मक्त हो रहे थे और इधर अरिष्टनेमिजी का चिन्तन चल रहा था--"मष्य कितना क्रूर बन गया है । अपनी रस-लोलुपता पूरी करने के लिए दूसरे असहाय जावों के प्राण लेने को तत्पर हो जाता है । कितनी घोर हिंसा ? कितनी क्रूरता ? मेरे लग्न पर हजारों पशु-पक्षियों की हत्या ? धिक्कार है ऐसे लग्न को । नहीं करना मुझे विवाह । यहीं से लौट चलना चाहिए, जिससे मनुष्यों की आँखें खुले और हिसकवृत्ति मिटे ।"
जीवों के बन्धनमुक्त होने की प्रसन्नता में वर राज अरिष्टनेमि कुमार ने अपने कुण्डल आदि आभूषण सारथि को प्रदान कर दिये और आज्ञा दी--
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