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________________ अरिष्टनेमि का लग्नोत्सव में नागरिक महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाये जाने लगे। श्री नेमिकुमार को एक उत्तम आसन पर पूर्वाभिमुख बिठाया और बलदेवजी और कृष्णजी ने स्वयं प्रीतिपूर्वक स्नान कराया । शरीर पर गोशीर्ष - चन्दन का लेप किया और वस्त्राभूषण से सुसज्ज किया । मुकुटकुण्डादि उत्तम मण्डित किया गया। हाथ में मंगलसूत्र बांधा गया । ५८५ कककककककक उधर राजा उग्रसेनजी के भवन में भी विवाह की धूम मची हुई थी। उन्होंने भवनादि और लग्न मण्डप की सजाई में कोई कसर नहीं रखी। बारात के स्वागत-सत्कार की उच्च कोटि की व्यवस्था की । भोजन व्यवस्था के लिए प्रचुर सामग्री एकत्रित की गई और सैकड़ों-हजारों पशुओं और पक्षियों का संग्रह किया । सुहागिन महिलाएँ मंगलगीत गाने लगी । राजीमती को भी स्नान कराया गया और गोशीर्ष चन्दन से अंगराग करने के बाद वस्त्राभूषणों से सुसज्जित किया गया । वह इन्द्राणी के समान दिव्य- आभा वाली परम सुन्दरी लग रही थी । उसके हृदय में प्रसन्नता का सागर लहरा रहा था । नेमिनाथ जैसा पति प्राप्त होने की प्रसन्नता उसके हृदय में समा नहीं रही थी । देवेन्द्र के समान सुशोभित श्री नेमिकुमार एक भव्य और मदोन्मत्त गजराज पर आरूढ़ हुए उन पर रत्नजड़ित छत्र धराया गया था। दोनों और श्वेत चामर डुलाये जा रहे थे । 4 बारात बहुत विशाल थी । नगाड़े, निशान और वाद्य-मण्डल मंगल धुन बजाते हुए चल रहे थे । उसके पीछे हिनहिनाते हुए अश्वों पर आरूढ़ कुमार-वृन्द चल रहा था । उनके पीछे वरराज अरिष्टने म कुमार एक सर्वश्रेष्ठ गजराज पर बिराजमान थे । उनके दोनों पार्श्व में राजागण, रक्षक के रूप में गजारूढ़ हो चल रहे थे । पीछे महाराजा श्री कृष्णचन्द्र जी, बलदेवजी, समुद्रविजयजी, वसुदेवजी आदि दशाहं गण थे। उनके पीछे शिविकाओं में रानियों और अन्य महिला-वृन्द चल रहा था। बारात बड़ी धूम-धाम और हर्षोल्लासपूर्वक आगे बढ़ रही थी। 1 Jain Education International नगर के दोनों ओर घर के द्वारों, चबूतरों और छज्जों पर दर्शक पुरुष और गवाक्षों, अट्टालिकाओं और जहाँ भी स्थान मिले, महिलाएं बारात का दृश्य देखने के लिए जमी हुई थी और वरराज नेमिकुमार को देख कर भूरि-भूरि प्रशंसा करती हुई राजमती के भाग्य की सराहना कर रही थी। बारात शनैः शनैः चलती हुई उग्रसेनजी के भवन की ओर बढ़ रही थी। जय जयकारों की ललकारों से दिशाएँ गुंज रही थी । चारों ओर हर्ष का सागर उमड़ रहा था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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