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नेमिकूमार का बल $၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀
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कर अनिरुद्ध ने कहा- “मैं अनिरुद्ध, उषा को लिये जा रहा हूँ।" यह सुन कर बाण क्रोधित हुआ और अपनी सेना ले कर युद्ध करने आया। सैनिकों ने अनिरुद्ध को चारों ओर से घेर लिया । उषा ने पति को कई सिद्ध-विद्याएं दी, जिससे अनिरुद्ध अत्यधिक सबल हो कर युद्ध करने लगा। युद्ध बहुत काल तक चला । अन्त में बाण ने अनिरुद्ध को नागपाश में बाँध लिया। अनिरुद्ध के बन्दी होने का समाचार प्रज्ञप्ति-विद्या ने श्रीकृष्ण को दिया। श्रीकृष्ण, बलदेव, प्रद्युम्न, शाम्ब आदि तत्काल आकाश-मार्ग से वहाँ आए । अनिरुद्ध को पाशमुक्त कर के बाण के साथ युद्ध करने लगे। कृष्ण ने समझाया--"तुझे तो अपनी पुत्री किसी को देनी ही थी, फिर झगड़ने का क्या कारण है ?" किन्तु बाण वरदान के भरोसे जूझ रहा था । अन्त में उसे नष्ट होना पड़ा और श्रीकृष्ण आदि उषा सहित द्वारिका आ कर सुखपूर्वक रहने लगे।
नेमिकुमार का बल एकबार अरिष्टनेमि, अन्य कुमारों के साथ क्रीड़ा करते हुए श्री कृष्ण वासुदेव की आयुधशाला में आये। वहां उन्होंने सूर्य के समान प्रकाशमान सुदर्शन चक्र देखा। यह वही सुदर्शन-चक्र था जो जरासंध के पास था और जरासंध का वध कर के श्रीकृष्ण के पास आया था। उन्होंने सारंग धनुष, कौमुदी गदा, पञ्चजन्य शंख, खड्ग आदि उत्तम शस्त्रादि देखे । नेमिकुमार ने पञ्चजन्य शंख लेने की चेष्टा की। यह देख कर शस्त्रागार के अधिपति चारुकृष्ण ने प्रणाम कर के निवेदन किया;--
__कुमार ! आप राजकुमार हैं और बलवान् हैं, किन्तु यह शंख उठाने में आप समर्थ नहीं हैं, फिर बजाने की तो बात ही कहाँ रही ? इसे उठाने और फूंकने की शक्ति एकमात्र त्रिखंडाधिपति महाराजाधिराज श्रीकृष्ण में ही है।"
अधिकारी की बात पर श्री नेमिकुमार को हँसी आ गई। उन्होंने शंख उठाया और फूंका । उस शंख से निकली गंभीर ध्वनि ने द्वारिका नगरी ही नहीं, भवन, प्रकोष्ट, वन-पर्वत और आकाश-मण्डल को कम्पायमान कर दिया। समुद्र क्षुब्ध हो उठा। गजशाला के हाथी अपना बन्धन तुड़ा कर भाग गए, घोड़े उछल-कूद कर खूटे उखाड़ कर भागे। श्रीकृष्ण, बलदेव और दशार्हगण आदि क्षभित हो कर आश्चर्य में पड़ गए । नागरिक-जन और सैनिक मूच्छित हो गए। श्रीकृष्ण सोचने लगे;--“शंख किसने फूंका ? क्या कोई चक्रवर्ती उत्पन्न हुआ है, या इन्द्र का प्रकोप हुआ है ? जब मैं शंख फूंकता हूँ
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