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________________ ५७६ तीर्थकर चरित्र . အနနနနနနနနနနံနန န နနနနနနုနု और अत्याचारियों को दण्ड देने के लिए युद्ध करने को तत्पर हुए । उसी समय शाम्ब अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो कर श्रीकृष्ण के चरणों में गिरा और नारदजी की करामात आदि सारी बात समझा कर क्षमा माँगी। श्रीकृष्ण, उदास हो कर बोले--"वत्स! तुने अच्छा नहीं किया। अपने आश्रित नभःसेन के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना था।" श्रीकृष्ण ने नभःसेन को समझा-बुझा कर शांत किया। नभःसेन, सागरचन्द से कम नामेला को प्राप्त करने या उसका अहित करने में समर्थ नहीं था । अतएव वह चला गया। किन्तु सागरचन्द के प्रति वैरभाव लिये हुए अवसर को प्रतीक्षा करने लगा। अनिरुद्ध-उषा विवाह राजकुमार प्रद्युम्न की वैदर्भी रानी (जो महादेवी रुक्मिणी के भाई रुक्मि नरेश की पुत्री थी) से उत्पन्न अनिरुद्ध कुमार यौवनावस्था को प्राप्त हुआ। उस समय शुभनिवास नगर में 'बाण' नाम का एक उग्र स्वभाव का विद्याधर राजा था। उसकी • उषा' नाम की पुत्री थी। उसने योग्य वर प्राप्ति के लिए गौरी-विद्या की आराधना की। विद्यादेवी सन्तुष्ट हो कर बोली--"वत्से ! कृष्ण का पौत्र अनिरुद्ध, इन्द्र के समान रूप और बल से युक्त है । बस, वही तेरे लिए योग्य वर है और वही तेरा पति होगा।" उषा के पिता बाण नरेश ने सुखकर देव की साधना की । यह सुखकर गौरीदेवी का प्रिय था। सखकर ने बाण को यद्ध में अजेय होने का वरदान दिया। यह बात गौरी को ज्ञात हुई, तो उसने सुखकर से कहा-"तुमने बाण को अजेय बना कर अच्छा नहीं किया। मैने उषा को वरदान दिया है । उसकी सफलता में यह बाधक भी हो सकता है। इसलिए अपने वरदान में संशोधन करो।" सुखकर ने बाण से कहा--" मैने तुझे युद्ध में अजेय बनाया है, किन्तु तू अजेय तब तक ही रह सकेगा, जब तक युद्ध का निमित्त कोई स्त्री नहीं हो । स्त्री का निमित्त होने पर मेरा दिया हुआ वरदान तेरी रक्षा नहीं करेगा।" ___ उषा सर्वोत्तम सुन्दरी थी। बहुत से विद्याधर उसे प्राप्त करने के लिए, बाण नरेश से मांग कर चुके थे, किन्तु बाण ने किसी की भी मांग स्वीकार नहीं की। उषा ने अपनी चित्रलेखा नाम की विश्वस्त खेचरी के साथ, अनिरुद्ध के पास सन्देश भेज कर स्नेहामन्त्रण दिया। अनिरुद्ध आया और गुपचुप गन्धर्व-विवाह कर के दोनों चल दिये । बाहर निकल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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