________________
विजयोत्सव और त्रिखण्ड साधना
विजयोत्सव चल ही रहा था कि श्रीकृष्ण के पास तीन प्रौढ़ विद्याधर-महिलाएँ आई और प्रणाम कर के कहने लगी; -
___ "वसुदेवजी, प्रद्युम्न और शाम्ब और बहुत-से विद्याधरों सहित शीघ्र ही यहाँ पहुंच रहे हैं। वहाँ उन्होंने भी विजय प्राप्त की है । जब वसुदेवजी अपने दोनों पौत्रों के साथ यहाँ से चल कर वैताढय पर्वत पर पहुँचे, तो शत्रु दल से उनका युद्ध प्रारम्भ हो गया। नीलकण्ठ और अंगारक आदि विद्याधर उनके पूर्वकाल के शत्रु थे ही । उन्होंने तत्काल युद्ध चालू कर दिया। दोनों पक्ष उग्र हो कर युद्ध करने लगे । देवों ने कल ही आ कर उन्हें सूचना दी कि जरासंध मारा गया, श्रीकृष्ण की विजय हो गई और युद्ध समाप्त हो गया। अब आप क्यों लड़ रहे हैं ?" यह सुन कर सभी विद्याधरों ने युद्ध करना बन्द कर दिया । राजा मन्दारवेग ने विद्याधरों को आदेश दिया कि "तुम सब उत्तम प्रकार की भेंट ले कर शीघ्र आओ । अब हमें वसुदेवजी को प्रसन्न कर के इनके द्वारा श्रीकृष्ण की कृपा और आश्रय प्राप्त करना है।"
_ विद्याधर नरेश त्रिपथर्षभ ने वसुदेवजी को अपनी बहिन और प्रद्युम्न को अपनी पुत्री दी। राजा देवर्षभ और वायुपथ ने अपनी दो पुत्रियाँ शाम्बकुमार को दी। अब वे सभी यहाँ आ रहे हैं । हम आपको यह शुभ सूचना देने के लिए आगे आई है।
___ इस प्रकार खेचरी-महिलाएँ सुखद समाचार सुना रही थी कि इतने ही में वसुदेवजी प्रद्युम्न, शाम्ब और विद्याधर नरेशादि वहां आ कर उपस्थित हुए। सभी के हर्षोल्लास में वृद्धि हुई । सभी स्नेहपूर्वक मिले । विद्याधरों ने विविध प्रकार की बहुमूल्य भेटे श्रीकृष्ण को अर्पण की।
विजयोत्सव पूर्ण होने पर श्रीकृष्ण ने बहुत-से विद्याधरों और भूचर-सामन्तों को साथ ले कर तीन खण्ड को अपने अधीन करने के लिए प्रयाण किया। छह महीने में तीन खण्ड साध कर मगध देश में आये । यहां एक देवाधिष्ठित कोटि-शिला थी, जो एक योजन ऊँची और एक योजन विस्तार वाली थी। श्रीकृष्ण ने उसे अपने बायें हाथ से उठाई, तो वह भूमि से चार अंगुल ऊपर उठ सकी। फिर उसे यथास्थान रख दी।
प्रथम वासुदेव ने कोटिशिला उठा कर मस्तक के ऊपर ऊँचे हाथ कर हथेलियों पर रख ली थी, दूसरे वासुदेव ने मस्तक तक, तीसरे ने कण्ठ, चौथे ने वक्ष, पाँचवें ने पेट, छठे ने कमर, सातवें ने जंघा और आठवें ने घुटने तक उठाई थी और इन नौवें वासुदेव ने भूमि से चार अंगुल ऊँवो उठाई । अवपिणो काल में बल के ह्रास का यह परिणाम है । फिर भी वासुदेव अपने समय के सर्वोत्कृष्ट महाबली थे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org