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________________ युद्ध की पूर्व रचना ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककदा सुदृढ़ एवं अभेद्य बना दिया। इसके बाद विख्यात, पराक्रमी एवं महान् योद्धा कोशलाधिपति हिरण्यनमि का सेनाधिपति पद पर अभिषेक किया। इस कार्य में सारा दिन व्यतीत हो गया और संध्या हो गई । शत्रु की व्यूह-रचना देख कर, उसी रात्रि को यादवों ने एक ऐसे गरुड़-व्यूह की रचना की कि जो शत्रु से अभेद्य रह सके। उस व्यूह के अग्रभाग में अर्धकोटि राजकुमार रहे जो महावीर थे। उनके आगे श्रीकृष्ण और बलदेवजी रहे । उनके पीछे अक्रूर, कुमुद, पद्म, सारण, विजयी, जय, जराकुमार, सुमुख, दृढ़मुष्टि, विदुरथ, अनाधृष्टि और दुर्मुख इत्यादि वसुदेव के एक लाख पुत्र रथारूढ़ हो कर रहे । उनके पीछे उग्रसेनजी एक लाख रथियों सहित रहे । उनके पीछे उनके चार पुत्र, उनके रक्षक के रूप में रहे । उनके पीछे, धर सारण, चन्द्र, दुर्धर और सत्यक नामक राजा रहे । राजा समुद्रविजयजी अपने महापराक्रमी दशाह बन्धुओं और उनके पुत्रों के साथ व्यूह के दक्षिण पक्ष में रहे। उनके पीछे महानेमि, सत्यनेमि, दृढ़नेमि, सुनेमि, अरिष्टनेमि, विजयसेन, मेघ, महीजय, तेजसेन, जयसेन जय और महावृति नाम के समुद्रविजयजी के कुमार रहे । साथ ही अन्य राजागण पच्चीस लाख रथियों सहित समुद्रविजयजी के सहायक बन कर रहे । बलदेवजी के पुत्र और युधिष्ठिरादि पाण्डव, बाँई ओर डट गए । उल्मूक, निषध, शत्रुदमन, प्रकृतिद्युति, सत्यकी, श्रीध्वज, देवानन्द, आनन्द, शान्तनु, शतधन्वा, दशरथ, ध्रुव, पृथु, विपृथु, महाधनु, दृढ़धन्वा, अतिवीर्य और देवनन्द-ये सब पच्चीस लाख रथिकों से परिवृत्त हो कर, धृतराष्ट्र के दुर्योधनादि पुत्रों का संहार करने के लिए सन्नद्धी हो कर पाण्डवों के पीछे खड़े हो गए। उनके पीछे चन्द्रयश, सिंहल, बर्बर, कांबोज, केरल और द्रविड़ के राजा नियत हुए। उनके पीछे धर्य और बल के शिखर समान महासेन का पिता अपने आठ हजार रथियों सहित आ उटा । उसके सहायक हुए-भानु, भामर, भीरु, असित, संजय, भानु, धृष्णु, कम्पित, गौतम, शत्रुजय, महासेन, गंभीर, बृहद्ध्वज, वपुवर्म, उदय, कृतवर्मा, प्रसेनजित्, दृढ़वर्मा, विक्रांत और चन्द्रवर्मा-ये सभी उन्हें घेर कर रक्षक बन गए । इस प्रकार गरुड़ध्वज (श्रीकृष्ण) ने गरुड़व्यूह की रचना की। श्री अरिष्टनेमिनाथ को भातृ-स्नेहवश युद्धस्थल में आये जान कर, शक्रेन्द्र ने अपने विजयी शस्त्रों और रथ सहित मातलि रथी को भेजा । वह रत्नजड़ित रथ अपने प्रकाश से प्रकाशित होता हुआ सभी जनों को आश्चर्यान्वित कर रहा था। जब मातलि रथी ने श्री नेमिनाथ से निवेदन किया, तो वे रथारूढ़ हो गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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