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________________ ५६० तीर्थङ्कर चरित्र နီနီ (၇၀၀ ၀ ၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀ ၀ ၀၀ बन गए हो, या तुम्हें यादवों ने घूस दे कर अपने पक्ष में कर लिया है । इसीसे तुम ऐसी बातों से मुझे डरा कर शत्रु के समक्ष झुकाना चाहते हो । किन्तु याद रखो कि केसरीसिंह कभी गीदड़भभकी से नहीं डरता । तुम देखोगे कि में इन पालियों के झुण्ड को क्षणभर में नष्ट कर दूंगा । तुम्हारी दुराशययुक्त बात उपेक्षणीय ही नहीं, धिक्कार के योग्य है।" जरासंध द्वारा हंसक-मन्त्री आदि के तिरस्कार से उत्साहित होता हुआ डिभक नाम का मन्त्री बोला;-- "महाराज ! आपका कथन यथार्थ है । रणभूमि में खड़े होने बाद के पीछे हट कर जीवित रहने से तो युद्ध में कट-मरना बहुत ही अच्छा है, यशस्वी है और वीरोचित है । इसलिए आप अन्य विचार छोड़ कर अभेद्य ऐसे चक्रव्यूह की रचना कर के युद्ध प्रारंभ कर दीजिए।" डिभक की बात जरासंध ने हर्ष के साथ स्वीकार की और अपने सेनापतियों को बुला कर चक्रव्यूह रचने की आज्ञा दी । इसके बाद हंसक, डि म क आदि मन्त्रियों और सेनापतियों ने मिल कर चक्रव्यूह की रचना की। · युद्ध की पूर्व रचना एक हजार बारा वाले चक्र के बाकार का व्यूह (स्थापना-रचना) बनाया गया। प्रत्येक आरक पर एक बलवान् बड़ा राजा अधिकारी बनाया गया। प्रत्येक अधिकारी राजा के साथ एक सौ हाथी, दो हजार रथ, पाँच हजार अश्व बौर सोलह हजार पदाति सैनिकों का जमाव किया गया । चक्र की परिधि (घेरा-बाहरी वृत्ताकार सीमा) पर सवा छह हजार राजा रहे । चक्र के मध्य में पांच हजार राजाबों और अपने पुत्रों के साथ स्वयं जरासंध रहा । चक्र के पृष्ठ-भाग में गान्धार और सैंधव देश की सेना रही । दक्षिण में धृतराष्ट्र के सौ पुत्र सेना सहित रहे । बांई ओर मध्य-प्रदेश के राजा रहे और आगे अनेक राजा सेना सहित जम गए । चक्रब्यूह के आगे शकट-व्यूह की रचना की गई और उसके प्रत्येक सन्धि-स्थान पर पचास-पचास राजा रहे । सन्धि के भीतर एक गुल्म (इसमें ९ हाथी, ९ रथ, २७ अश्वारोही और ६५ पदाति होते हैं) से दूसरे गुल्म में जाने योग्य रचना की गई, जिसमें अनेक राजा और सैनिक रहे । चत्रह के बाहर अनेक प्रकार के व्यूह बना कर चक्रव्यूह को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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