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________________ मन्त्रियों का परामर्श ठुकराया जरासंध के समीप उसका हंसक नामक मन्त्री, कुछ मन्त्रियों के साथ उपस्थित हुआ और नम्रतापूर्वक निवेदन किया; " स्वामिन् ! हम आपके मन्त्री हैं और आपके हित में निवेदन करते हैं । महाराज ! परिस्थिति पर विचार कीजिए । यादव - कुल अभी उन्नति के शिखर पर पहुँच रहा है । जिस वसुदेव को मरवाने का आपने भरपूर प्रयत्न किया, वह नहीं मर सका । रोहिणी के स्वयंवर में ही आपने वसुदेव के बल को प्रत्यक्ष देख लिया है, जिसे आपके वीर योद्धा, सामन्त तथा सेना नहीं जीत सके + । उसके बलदेव और कृष्ण नाम के दो पुत्रों के बल, पराक्रम एवं अभ्युदय का तो कहना ही क्या ? उनके अभ्युदय के प्रभाव से देव भी उनके सहायक हैं । युवराज कालकुमार को भ्रमित कर के जीवित ही चिता में झोंक कर भस्म करने वाला उनका दैवी प्रभाव हम देख ही चुके हैं। जिनके लिए देव ने एक रात्रि में ही देवलोक के समान अनुपम नगरी बसा दी, उसके वृद्धिंगत प्रभाव को देख कर हमें शांत रहना चाहिए। जिसने अपनी बाल अवस्था में राक्षसों को मार डाला, किशोरवय में महाबली कंसजी को देहगत कर दिया और अकेले बलदेवजी ने रुक्मी नरेश और शिशुपाल को सेना सहित पराजित कर के रुक्मिणी को ले आये, उन महावीरों से युद्ध करने के पूर्व आपको गम्भीर विचार करना है । आपके साथी शिशुपाल, दुर्योधन आदि उनके सामने कुछ भी महत्व नहीं रखते, जबकि उधर कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और शाम्ब भी राम कृष्ण जैसे है और पाण्डव जैसे महाबली भी उनके आश्रय में रहते हुए युद्ध करने आये हैं । 'महाराज ! जिनके घर त्रिलोकपूज्य भावी तीर्थंकर भगवान् ने जन्म लिया, जिनका जन्मोत्सव करने देवलोक के इन्द्र आवें, उन अनन्तबली के सामने जूझने को तत्पर होना, अपने-आपको जीवित ही महानल में झोंकना है । हम आपके आश्रित हैं और आपके तथा साम्राज्य के हित के लिए आपसे निवेदन करते हैं। यदि आप शान्ति से विचार करेंगे, तो आपको हमारे कथन की सत्यता ज्ञात होगी और वैर-विरोध का वातावरण पलट कर मैत्री सम्बन्ध स्थापित हो सकेगा ।" " जरासंध को अपने मन्त्रियों का परामर्श नहीं दिशा में सोचने ही नहीं दे रहा था । वह क्रोधातुर हो " हंसकादि मन्त्रियों ! या तो तुम शत्रुओं के + पू. ३५६ । Jain Education International - भाया । उसका दुर्भाग्य उसे सही कर बोला ; - प्रभाव से भयभीत हो कर कायर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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