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तीर्थङ्कर चरित्र
श्री समुद्रविजयजी के परामर्श से श्रीकृष्ण ने अपने अनुज-बन्धु अनाधृष्टि का सेना पति पद का अभिषेक किया। श्रीकृष्ण की सेना में जयजयकार की घोर ध्वनि हुई । इस ध्वनि को सुन कर शत्रु सैन्य क्षुभित हो गया ।
युद्ध वर्णन
युद्ध प्रारंभ हो गया । सर्वप्रथम दोनों ओर अग्रभाग में रही सेना जूझने लगी । एक-दूसरे पर अस्त्र-वर्षा करने लगे। इस प्रकार दोनों ओर से बहुत देर तक संघर्ष चलता रहा, फिर जरासंध के सैनिकों ने सम्मिलित हो, व्यवस्थित प्रहार से गरूड़ व्यूह के सैनिकों की पंक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया । उसी समय श्रीकृष्ण ने अपने सैनिकों को आश्वस्त किया । दक्षिण तथा वाम भाग पर रहे हुए महानेमि और अर्जुन तथा अग्रभाग पर रहे हुए अनाधृष्टि-इन तीनों ने क्रोधित हो कर शंखनाद किया। तीनों के शंख के सम्मिलित नाद और सामूहिक वादिन्त्र की गंभीर ध्वनि ने जरासंध की सेना का मनोबल तोड़ दिया । इसके बाद नेमि, अनाधृष्टि और अर्जुन, बाणों की घोर वर्षा करते हुए आगे बढ़े। इनके प्रबल प्रहार को सहन करना विपक्ष के राजाओं के लिये अत्यंत कठिन हो गया । वे अपने शकट-व्यूह का स्थान छोड़ कर भाग गए। इन तीनों वीरों ने तीन स्थान से चक्रव्यूह को खंडित कर दिया और व्यूह के भीतर घुस गए। उनके साथ उनकी सेना ने भी प्रवेश किया । इनका अवरोध करने के लिए जरासंध के पक्ष के दुर्योधन, रौधिरि और of आगे आये । दुर्योधन अपने महारथियों के साथ अर्जुन के संमुख आया । रौधिरि अनाधृष्टि के सामने और रुक्मि, महानेमि से टक्कर लेने लगा । इन तीनों के साथ उनकी रक्षक -सेना भी थी। छहों महावीरों का द्वंद्व युद्ध प्रारंभ हुआ । वीरवर महानेमि ने रुक्मि का रथ और अस्त्र नष्ट कर के वध्य स्थिति पर ला दिया । रुक्मि की दुर्दशा देख कर शत्रुतप आदि सात राजा उसकी रक्षार्थ आये, किंतु महानेमि के महा-प्रहार से सातों के धनुष्य टूट कर व्यर्थ हो गए। शत्रुंतप को अन्य कोई मार्ग दिखाई नहीं दिया, तो उसने महानेमि पर एक शक्ति फेंकी। उस दैविक शक्ति में से विविध प्रकार के भयंकर अस्त्र धारण करने वाले क्रूरकर्मी हज़ारों किन्नर उत्पन्न हो कर महानेमि की ओर धावा करने चले । उस जाज्वल्यमान शक्ति को देख कर यादव-सेना भयभीत हो गई । महारथी भी चिन्तित हो गए । इन्द्र के भेजे हुए मातलि ने राजकुमार अरिष्टनेमि से कहा - " स्वामिन् ! यह वह शक्ति है, जिसे रावण ने धरणेन्द्र से प्राप्त की थी। इसका भेदन मात्र वज्र से
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