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________________ श्रीकृष्ण की सेना भी सीमा पर पहुंची जरासंध का युद्ध-प्रयाण नारदजी का ज्ञात हआ, तो उन्होंने तत्काल श्रीकृष्ण को सूचना दी और सावधान किया। राज्य के भेदियों ने भी सीमान्त के दूर प्रदेश से आई हुई युद्ध-लहर का सन्देश भेजा । इसलिय द्वारिका में भी युद्ध की तैयारियां होने लगी। महाराजा का सन्देश पा कर राज्य के योद्धा और सामंतगण शस्त्र-सज्ज हो कर आने लगे। समुद्र के समान दुर्धर एवं गम्भीर समुद्रविजयजो अपने महाबलवान् पुत्रों-महानेमि, सत्यनेमि, दृढ़नेमि, सुनेमि, भगवान् अरिष्टनेमि, जयसेन, हाजय, तेजसेन, जय, मेघ, चित्रक, गौतम, स्वफल्क, शिवनन्द और विश्वक्सेन शस्त्र धारण किये हुए उपस्थित हुए। समुद्रविजयजी के अनुज-बंधु अक्षोभ्य और उनके आठ पुत्र-उद्धव, धव, शुंभित महोदधि, अंभोनिधि, जलनिधि. वामनदेव और दृढव्रत सहित उपस्थित हुए । अक्षोभ्य से छोटे भाई स्तिमित और उसके पांच पुत्र-उर्मिमान्, वसुमान्, वीर, पाताल और स्थिर भी उत्साहपूर्वक सम्मिलित हुए। सागर और उसके - निष्कम्प, कम्पन, लक्ष्मीवान्, केसरी, श्रीमान् और युगान्त नाम के छह पुत्र भी आ पहुँचे। हिमवान् और उसके--विद्युत्प्रभ, गन्धमादन और माल्यवान्--ये तीन पुत्र भी रणभूमि में अपना युद्ध-कौशल दिखाने को आ पहुँचे । महेन्द्र, मलय, सह्य, गिरि, शैल, नग और बल, इन सात पुत्रों के साथ अचल दशाह भी रथारूढ़ हो कर युद्धार्थ आये । कर्कोटक, धनंजय, विश्वरूप, श्वेतमुख और वासुकी, इन पांच पुत्रों के साथ धरण दशाह भी सम्मिलित हुए । पूरण दशाह के साथ--दुःपुर, दुर्मुख, दुर्दश और दुर्धर--ये चार पुत्र, अभिचन्द्र और उसके-चन्द्र, शशांक, चन्द्राभ, शशि, सोम और अमृतप्रभः ये छह पुत्र और दशाह में सब से छोटे वसुदेव और उनके बहुत-से पुत्र भी शत्रु से लोहा लेने के लिए आ उपस्थित हुए । श्री बलदेवजी और उनके--उल्मुक, निषध, प्रकृति, द्युति, चारुदत्त, ध्रुव, शत्रुदमन, पीठ, श्रीध्वज, नन्दन, श्रीमान्, दशरथ, देवानन्द, आनन्द, विपृथु, शान्तनु, पृथु, शतधम्, नरदेव, महाधनु और दृढ़धन्वा आदि बहुत-से पुत्र भी सम्मिलित हुए । श्रीकृष्ण के पुत्रों में--भानु, भामर, महाभानु, अनुभानुक, बृहद्ध्वज, अग्निशिख, धृष्ण, संजय, अकंपन महासेन, धीर, गंभीर, उदघि, गौतम, वसुधर्मा, प्रसेनजित, सूर्य, चन्द्रवर्मा, चारुकृष्ण, सुचारु, देवदत्त, भरत, शंख, प्रद्युम्न और शाम्ब तथा अन्य हजारों महाप क्रिमी पुत्र स्वेच्छा से उत्साह पूर्वक सन्नद्ध हो कर उपस्थित हुए। उग्रसेन और उनके--धर, गुणधर, शक्तिक, दुर्धर, चन्द्र और सागर नाम वाले पुत्र तथा श्रीकृष्ण के अन्य सम्बन्धी भी उपस्थित हुए थे। उधर युधिष्ठिर आदि पाण्डव, दुर्योधन से प्रेरित हो कर पहले से ही युद्ध में प्रवृत्त हुए थे । दुर्योधन ने सोचा कि श्रीकृष्ण, पाण्डवों का पक्ष ले कर आये थे और वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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