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प्रद्युम्न का वैदर्भी के साथ लग्न
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श्रीकृष्ण ने कहा--" देवी ! तुम्हारे गर्भ में एक बालक आया है । वह प्रद्युम्न के समान पराक्रमी होगा ।"
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गर्भकाल पूर्ण होने पर जाम्बवती के एक पुत्र का जन्म हुआ । उसका नाम 'शाम्ब' रखा गया । उसी रात सारथि के 'दारुक' नाम का और सुबुद्धि मन्त्री के 'जयसेन' नाम का पुत्र जन्मा । सत्यभामा के पहले 'भानु कुमार' था । अब पुत्र जन्मा, उसका नाम 'भीरु' रखा गया । जाम्बवती का पुत्र, सारथि पुत्र दारुक और मन्त्री पुत्र जयसेन के साथ खेलते हुए बड़ा हुआ। शाम्बकुमार बुद्धिमान् और पराक्रमी था । उसने थोड़े ही दिनों में सभी कलाएँ सीख लीं।
प्रद्युम्न का वैदर्भी के साथ लग्न
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महारानी रुक्मिणी ने अपने भाई - भोजकट नरेश रुक्मि के पास एक दूत भेजा और उसकी पुत्री वैदर्भी की अपने पुत्र प्रद्युम्न के लिये याचना की, साथ ही कहा कि" इस सम्बन्ध से पूर्व का मनमुटाव समाप्त हो कर मधुर सम्बन्ध बन जायगा ।" दूत के द्वारा बहिन की मांग सुन कर रुक्मि नरेश का द्वेष जाग्रत हुआ । उन्होंने कहा--' मैं अपनी पुत्री, किसी चाण्डाल को तो दे सकता हूँ, परन्तु कृष्ण के यहां नहीं दे सकता ।" दूत लौट आया और रुक्मिणी को उसके भाई का उत्तर कह सुनाया । रुक्मिणी को ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी । वह उदास हो गई। यह अपमानजनक बात थी । इससे लोगों में हलकापन लगने की सम्भावना थी । वह चिन्ता में डूबी हुई थी कि इतने में प्रद्युम्नकुमार वहां आ गया । माता को उदास देख कर पूछा - " माता ! उदास क्यों दिखाई दे रही हो ? क्या कारण हुआ चिन्ता का ?" रुक्मिणी ने सारी बात सुनाई, तो प्रद्युम्न ने कहा-
" मेरे मामा, सीधी बात से समझने वाले नहीं है । मैं उनके योग्य उपाय कर के उनकी पुत्री से लग्न करूँगा । आप निश्चित रहें ।'
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माता को आश्वासन दे कर प्रद्युम्नकुमार, अपने भाई शाम्बकुमार को साथ ले कर भोजकट नग आये । नगर के बाहर उन्होंने अपना रूप पलटा । एक बना किन्नर और दूसरा चाण्डाल । दोनों संगीत की सुरीली एवं मधुर स्वर-लहरी लहराते हुए नगर में घूमने लगे । उनके सम्मोहक राग में लीन हो कर लोगों का झुण्ड उनके साथ हो गया । उनके अलौकिक संगीत की प्रशंसा राजा ने सुनी और उन्हें बुलाया । राज सभा में
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