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तीर्थकर चरित्र ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककमय
गायन करने बैठे। राजकुमारो वैदर्भी भी राजा के निकट बैठ कर गायन सुनने लगी। राज-सभा और राज-परिवार, उनकी स्वर-लहरी में हिलोरे लेने लगा। जब संगीत समाप्त हुआ, तब सब सचेत हुए। राजा ने प्रसन्न हो कर उन्हें बहुत धन दिया और उनका स्थान तथा परिचय पूछा। वे बोले--
"हम स्वर्ग से उतर कर द्वारिका में आये हैं और वहीं हमारा निवास स्थान है। वही द्वारिका जिसका निर्माण देव ने किया है।"
द्वारिका का नाम सुन कर वैदर्भी ने पूछा-- • महारानी रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्नकुमार को तुम जानते हो ?"
"प्रद्युम्न को कौन नहीं जानता ? रूप में देव के समान, कामदेव के तुल्य, पृथ्वी के अलंकारभूत महापराक्रमी। वह तो अपने गुणों से ही सर्वप्रिय है । उस तेजस्वी नरपुंगव को तो सभी जानते हैं"--शाम्ब ने कहा।
यह सुन कर वैदर्भी प्रद्युम्न के प्रति राग-रंजित हुई। बूआ (फूफी) की ओर से सम्बन्ध की माँग ले कर आये हुए दूत सम्बन्धी विषय उसकी जानकारी में था। इसी से उसने पूछा।
राज्य का प्रधान हाथी उन्मादित हो कर नगर के बाजारों और गलियों में घूम रहा था । लोग आतंकित हो कर घरों में घुस रहे थे। जो भी वस्तु हाथी की सूंड में आई, वह नष्ट हो कर रही । महावतों के सारे प्रयत्न व्यर्थ गए । हाथी द्वारा विनाश का भय बढ़ता ही जा रहा था। राजा ने ढिंढोरा पिटवाया--"जो हाथी को वश में कर के गजशाला के खूटे से बाँध देगा, उसे मुंह-माँगा पुरस्कार मिलेगा।" किंतु किसी ने साहस नहीं किया। आतंक बढ़ता जा रहा था और राजा चिंतित का। उसी समय दानों संगीतज्ञों ने कहा -" महाराज ! हम अपने संगीत के प्रभाव से गजराज को वशीभूत कर के स्थानबद्ध कर देंगे।" दोनों उठे और जिस ओर हाथी का उपद्रव था, उस ओर चले। दूर से हाथी को अपनी ओर आते देख कर उन्होंने संगीत-प्रवाह चलाया। हाथी का उपद्रव थमा और वह धीरे-धीरे उनके निकट आ कर ठहर गया । वे दोनों हाथी पर सवार हो गए और गजशाला में ला कर बांध दिया। राजा प्रसन्न हुआ और पुरस्कार मांगने का कहा। उन्होंने कहा:
____ "महाराज ! हमें हाथ से भोजन बनाना पड़ता है । इसलिये हमें भोजन बनाने वाली चाहिये । कृपया आपकी प्रिय पुत्री दीजिये, जिससे हमारी मनोकामना पूरी हो।"
सुनते ही राजा का क्रोध भड़का और उसी समय उन्हें नगर से बाहर निकलवा
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