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________________ ५३८ तीर्थंकर चरित्र ၈၈၈၈၈၈၈၈၈၈၈၈၈၈ ရာစု $ $ $$1$န်နီနီနီ पूर्वक सत्कार किया। नारदजी ने उन्हें प्रद्युम्न के जन्म एवं माता-पिता का परिचय देते हुए कहा “प्रद्युम्न ! तुम्हारी माता पर संकट है । वह अपनी सौत सत्यभामा से वचनबद्ध हुई थी कि 'जिसके पुत्र का प्रथम विवाह होगा, उस विवाह में दूसरी अपने सिर के बाल कटवा कर दासी बनेगी।' सत्यभामा के पुत्र भान कुमार का विवाह होने वाला है। यदि तुम यहीं बैठे रहे और भानु का विवाह हो जायगा, तो तुम्हारी माता को दासी बनना पड़ेगा । इस दुःख से वह जीवित नहीं रह सकेगी। यदि माता के सम्मान की रक्षा करना हो, तो चलो और माता के सम्मान और प्राणों की रक्षा करो।" ___नारदजी की बात सुन कर प्रद्युम्न ने प्रज्ञप्ति विद्या से विमान बनाया और नारदजी के साथ द्वारिका पहुँचा । नारदजी ने कहा-" देखो, यह देव द्वारा निर्मित तुम्हारे पिता की भव्य नगरी ।" प्रद्युम्न ने कहा--" महात्मन् ! आप अभी थोड़ी देर विमान में ही रहें । मैं कुछ चमत्कार बताने के लिए नगरी में जाता हूँ। आप उपयुक्त समय पर ही पधारें।" प्रद्युम्न नगरी में गया। उसने विवाह की धूमधाम देखी । भानु कुमार के साथ व्याही जाने वाली कन्या भी वहीं थी । प्रद्युम्न ने विद्या-बल से उसका हरण कर के नारदजी के पास रख दी । नारदजी ने राजकुमारी से कहा-"वत्से ! तू निर्भय रह.। यह प्रद्युम्न भी श्रीकृष्ण का ही पुत्र है।" इसके बाद प्रद्युम्न एक वानर को ले कर उस उद्यान में गया--जहाँ विवाह-मण्डप बना था । वानर को उद्यान में छोड़ कर वहाँ के सारे फल-फूल नष्ट करवा दिये । इसी प्रकार उसने विद्याबल से घास का भण्डार नष्ट करवाया और जलाशयों को निर्जल बना दिया। फिर उसने एक उत्तम घोड़ा लिया और उस पर चढ़ कर भानुकुमार के सम्मुख गया और घोड़े को नचा कर कौतुक दिखाने लगा । भानुकुमार, घोड़ा देख कर मुग्ध हो गया। उसने प्रद्युम्न से घोड़े का परिचय और मूल्य पूछा । प्रद्युम्न ने कहा--" पहले इस घोड़े पर सवार हो कर देख लो। इसके बाद आगे बात करेंगे।" भानु घोड़े पर चढ़ा । वह थोड़ी ही दूर गया होगा कि घोड़ा बिदका और भानु नीचे गिर पड़ा । प्रद्युम्न वहाँ से चल कर वेदपाठी ब्राह्मण का रूप धारण कर, बाजार में पहुँचा और मधुर स्वर से वेदपाठ करने लगा। इस प्रकार करते हुए वह अन्तःपुर के निकट पहुँचा । सामने महारानी सत्यभामा की दासी आ रही थी, वह कूबड़ी थी। उसकी कमर झकी हुई थी। उसे देख कर प्रद्युम्न ने अपनी विद्या का चमत्कार दिखाया और मन्त्र पढ़ कर और हाथ फिरा कर सीधी कर दी। कुब्जा सीधी हो गई । महात्मा का चमत्कार देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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