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________________ प्रद्युम्न का कौतुक के साथ द्वारिका में प्रवेश चन्दादकककककककककक ककककककककककककककककवानपञ्चकन्यकालककककककककककककककक बोली--" मेरे पास गोरी और प्रज्ञप्ति विद्या है। इन दोनों विद्याओं के बल से तुम सुरक्षित रह सकोगे । मैं तुम्हें दोनों विद्याएँ दे कर निर्भय बना दूंगी।" --' तब आप मुझे दोनों विद्याएँ दीजिये । मैं तत्पर हूँ।" कनकमाला ने दोनों विद्याएँ प्रद्युम्न को दो और उसने साधना प्रारंभ कर के थोड़े ही समय में विद्या सिद्ध कर ली । विद्या सिद्ध हो जाने के बाद कनकमाला ने प्रद्युम्न से अपनो इच्छा पूर्ण करने का आग्रह किया, तब प्रद्युम्न ने कहा "माता ! पहले तो आप मुझे पाल-पोष कर बड़ा करने वाली माता थी और अब विद्या सिखा कर गुरु-पद भी प्राप्त कर लिया । ऐसी पूज्या के प्रति मन में बुरे भाव उत्पन्न कैसे हो सकते हैं ? आपके मन में मेरे प्रति पुत्र-सम वात्सल्य भाव नहीं रहा और मेरा शरीर आपकी भावना बिगाड़ने का कारण बना, इसलिये मेरा अब यहां से टल जाना ही उचित है"--इतना कह कर और प्रणाम कर के प्रद्युम्न चलता बना और नगर के वाहर कालाम्बुका नामकी वापिका के किनारे बैठ कर चिन्ता-मग्न हो गया । हताश हुई कनकमाला प्रद्युम्न पर क्रोधित हुई। उसे अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने की भी चिन्ता हुई । प्रद्युम्न से उसे वैर भी लेना था । उसने अपने कपड़े फाड़ दिये और शरी पर नाखुन गढ़ा-गढ़ा कर घाव बना दिये । रक्त की बूंदें निकाली और कोलाहल मचाया। कोलाहल सुन कर उसके पुत्र दौड़े आये । उसने कहा--"दुष्ट प्रद्युम्न, कामान्ध बन कर मुझे आलिंगन करने लगा, उससे अपने शील की रक्षा करने में मेरे वस्त्र फट गए और शरीर घायल हो गया । मैं चिल्लाई, तो वह भाग गया। जाओ, उसे इस नीचता का दण्ड दो ।" उसके पुत्र दौड़े और प्रद्युम्न पर प्रहार करने को उद्यत हुए। प्रद्युम्न सावधान था। प्राप्त विद्या के बल से उसने उन सभी को धराशायी कर दिया। इतने में राजा भी आया और प्रद्युम्न को मारने लगा। प्रद्युम्न ने राजा को परास्त कर दिया। इसके बाद उसने रानी के पाप की सारी कहानी राजा को सुना दी । सुन कर राजा ने प्रद्युम्न को निर्दोष मान कर छाती से लगाया और रानी के कुकृत्य पर खेदित होने लगा। प्रद्युम्न का कौतुक के साथ द्वारिका में प्रवेश उसी समय नारदजी वहां आ पहुँचे । गजा और प्रद्युम्न नारदजी का विनय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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