________________
.' ५३६
तीर्थकर चरित्र কককককককককককককককককককককক্কক্কক্কক্কক্ককককককককককৰুৰুৰুৰুৰু फल का बास्वादन में कर सकती हूँ। यदि में इस उत्तम फल के भोग से वञ्चित रहती हूँ तो मेरा जन्म ही व्यर्थ रह जायगा।' इस प्रकार विचार कर के उसने दृढ़ निश्चय कर लिया और एक दिन एकान्त पा कर प्रद्युम्न सें कहा; -
“प्रिय प्रद्युम्न ! मैं तुझ पर मुग्ध हूँ और तुझे अपन्दा प्रियतम बनाना चाहती हूं। तू मुझे अत्यन्त प्रिय है । चल हम केलिगृह में चलें और जीवन का आनन्द लूटें ।"
कनकमाला को प्रद्युम्न अब तक माता ही समझ रहा था । उसके मुख से उपरोक्त शब्द सुन कर और उसके मुख एवं नयन पर छाये विकार को देख कर, अवाक रह गया। उसकी वाणी ही मूक हो गई। उसे मौत देख कर रानी बोली;
“अरे कान्त ! तू मूक क्यों हो गया ? यथा राजा से डरता है ? नहीं, मत डर तू उससे । मेरी शक्ति नहीं जानता । में उत्तरीय श्रेणी के नलपुर नगर के प्रतापी नरेश निषधराज की पुत्री हूँ। युवराज नैषध मेरा भाई हैं । पित्ता से मैने ‘गोरी' नाम की विद्या सीखी है और पति से मैने प्रज्ञप्ति विद्या प्राप्त की है । पति मुझ में अनुरक्त है। वह मुझे छोड़ कर दूसरी स्त्री नहीं चाहता । मेरे पास दो विद्या ऐसी है कि जिससे में पति से निर्भय हूं। मेरी ही शक्ति से राजा दिर्भय है और संसार को तृषा के समान तुच्छ समझता है । मैं स्वयं कालसंबर से अधिक शक्ति-मालिनी हूँ। तुझे राजा से नहीं डरना चाहिए और खुले हृदय से नि:शंक हो कर मेरे साफ मोर भोयना चाहिए।"
__ --"शान्तं पापं ! शान्त पापं ! "भाका ! तुम्हारे मुंह से ऐसी बातें निकली ही कैसे ? अरे, इस प्रकार के विकार तुम्हारे मन में उठे ही कसे ? अपने पुत्र के साथ ऐसा घोर नरक तुल्प विचार ?"
- नहीं, नहीं, तू मेरा पुत्र नहीं है । राडा तुझे बन में से उठा कर लाये हैं । किमी ने तुझे वन में छोड़ दिया था । तेरा यहां पालन-पोषण मात्र हुब्बा है। इसलिए माता-पुत्र का सम्बन्ध कास्तविक नहीं है । तुम इस भ्रम को अपने मन से निकाल दो और मझे अपनी प्रेयसी मान कर अपना सम्पूर्ण प्रेम मझे दे दो"--कामान्ध कनकम्माला ने निर्लज्ज बन कर कहा ।
प्रधुम्न विचार में पड़ गया। उसने सोचा---'इस दुष्टा की जाल में से किस प्रकार सुरक्षित रह कर बचा जय ?' उसने तत्काल मा पा लिया और बोला;
* यदि आपकी बात मानी जाय तो हरे और उन्ह के पुत्र मुझे बीवित नहीं रहने देंगे। इसलिए मेरे जीवन का रक्षा का उपाय क्या होगा ?"
"प्रियतम ! तुमा निर्भय रहो"-प्रद्युम्न के उत्तर से आशान्वित हुई कनकमाला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org