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________________ कककककक प्रद्युम्न वृत्तांत repesepesegeseperego se pegeses ५३५ और पाण्डवों के भाई हो । गुप्त कारण से तुम्हारा पालन दूसरों के द्वारा हुआ है । परन्तु तुम्हारी सच्ची माता तो में और पिता पाण्डु नरेश ही हैं । तुम्हें भाइयों से मिल कर रहना चाहिए। उनका द्रोह नहीं करना चाहिए और दुर्योधन का साथ भी तुझे छोड़ देना चाहिए। देवी ने तेरे लिए शुभाशीष भी कही ।" " माधव ! आपका और माता का कथन यथार्थ है । मेरा उनसे प्रणाम निवेदन करें और कहें कि में दुर्योधन से वचनबद्ध हो चुका हूँ, सो उनका साथ मुझे जीवनभर निभाना ही होगा। हां, मैं इतना वचन देता हूँ कि आपके चार पुत्रों का मैं अनिष्ट नहीं करूँगा | अर्जुन के प्रति मेरे मन में ईर्षा जमी हुई है । मैं उससे तो अपनी पूरी शक्ति लगा कर लडूंगा । यदि मेरे द्वारा उसका अनिष्ट हुआ, तो मैं आपकी सेवा में आजाउंगा और आपके पांच पुत्र पूरे रहेंगे । यदि अर्जुन से में मारा गया, तो आपके सभी पुत्र आपकी सेवा में हैं ही ।" Jain Education International कुकुकुकुकु श्रीकृष्ण, पाण्डु और विदुर से मिले । पाण्डु नरेश ने श्रीकृष्ण द्वारा दुर्योधन की दुष्टता का हाल जान कर अपने पुत्रों के लिए सन्देश दिया कि "अब वे दुर्योधन से किसी प्रकार की सन्धि नहीं कर के युद्ध ही करें। दुष्ट के साथ की गई सज्जनता भी दुःखदायक होती है।" श्रीकृष्ण, द्वारिका लौट गए। विदुरजी के मन में, कुरु-कुल का विग्रह एवं संसार की अनित्यता देख कर वैराग्य उत्पन्न हुआ । उसी अवसर पर मुनिराज श्री विश्वकीत्तिजी वहाँ पधारे। उनका उपदेश सुन कर विदुरजी ने संसार का त्याग कर, निर्ग्रन्थ- प्रव्रज्या स्वीकार की और मुनि-धर्म का पालन करते हुए ग्रामानुग्राम विचरने लगे । प्रद्युम्न वृत्तांत + प्रद्युम्नकुमार, कालसंवर विद्याधर के यहाँ बड़ा हुआ और कलाकौशल सीख कर निपुण बना । यौवन अवस्था प्राप्त कर जब वह मूर्तिमान कामदेव दिखाई देने लगा, तो कालसंवर विद्याधर की रानी कनकमाला ही उस पर मुग्ध हो गई। उसने सोचा--' प्रद्युम्न जैसा सुन्दर, सुघड़ और देवोपम पुरुष दूसरा कोई नहीं हो सकता । संसार में वही नारी सौभाग्यवती होगी जो इसकी प्रेयसी बनेगी ।' रानी चिन्तातुर हुई। विचारों में परिवर्तन हुआ । कुतर्क रूपी कुकरी कूकी--" में रानी हूँ, स्वामिनी हूँ । प्रद्युम्न मेरा पालित-पोषित है, मेरा सिंचित एवं रक्षित वृक्ष है । इस पर मेरा पूर्ण अधिकार है । इसके यौवन रूपी + प्रद्युम्नकुमार के जन्म और सहरण का वर्णन पू. ३९५ से ४०१ तक हुआ है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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