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________________ ५३४ तीर्थङ्कर चरित्र एकककककक Jain Education International प्रोत्साहन दें और आशीर्वाद दे कर शुभ कामना करते रहें ।" दुर्योधन की दुर्भावना का खेद लिये हुए, धृतराष्ट्र और विदुर वहाँ से चले गए । श्रीकृष्ण की मध्यस्थता ककककककककन श्रीकृष्णचन्द्रजी ने पाण्डवों का युद्धोत्साह देखा । उन्हें शान्त रहने का निर्देश दे, स्वयं रथारूढ़ हो कर हस्तिनापुर आये । उन्होंने धृतराष्ट्र के समक्ष दुर्योधन को बहुत समझाया और अन्त में कहा -- “ यदि तुम पाँचों पाण्डवों को केवल पाँच गाँव ही दे दो, तो में उन्हें समझा कर सन्धि करवा दूंगा और वे इतने मात्र से सन्तुष्ट हो जाएँगे ।" " गोविन्द ! मैं किसी भिखारी या याचक को प्रसन्न हो कर कुछ गाँव दान कर सकता हूँ । परन्तु उन गविष्टों को सूई की नोक पर आवे, इतनी भूमि भी नहीं दे सकता । वे कैसे वीर हैं जो भीख में भूमि माँगते हैं ? उनका लेन-देन का हिसाब तो मेरी ये भुजाएँ ही कुरुक्षेत्र में समझेगी। आप अब उनकी बात ही छोड़ दें ।" " दुर्योधन ! समझ । यह स्वर्ण अवसर पुन: लौट कर नहीं आएगा । पाण्डवों ने पांच गांव की भीख नहीं मांगी है। मैं इस वंश -विग्रह, रक्तपात एवं विनाश को टालने के लिए, अपनी ओर से सुझाव दे रहा हूँ । यदि तू यह स्वर्ण अवसर चूक गया तो अवश्य ही पछतायगा । पाण्डवों के प्रताप एवं प्रचण्ड बाहूबल के प्रलयंकर प्रवाह में तेरा गर्व ही नहीं, तू स्वयं ही वह जायगा । तेरा भयंकर भावी ही तुझे दुर्बुद्धि से मुक्त नहीं होने देता, अस्तु ।" दुर्योधन ने संकेत से कर्ण को एक ओर बुलाया और दोनों ने मिल कर श्रीकृष्ण को बाँध कर बन्दी बनाने की मन्त्रणा की । सत्यकी ने उसकी दुरेच्छा की सूचना श्रीकृष्ण को दी, तो श्रीकृष्ण ने क्रुद्ध हो कर इतना ही कहा – “विनाश-काल ने ही इनकी बुद्धि भ्रष्ट कर डाली है । यह बिचारा मेरा क्या बिगाड़ सकता है ? में तो उपेक्षा कर रहा हूँ, परन्तु पाण्डवों की प्रतापाग्नि में भस्म होने से यह नहीं बच सकेगा ।" श्रीकृष्ण वहाँ से चले गए, तव द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र ने आगे बढ़ कर श्रीकृष्ण को विनम्रतापूर्वक निवेदन कर शांत किया। श्रीकृष्ण वहाँ से वृद्ध पाण्डुजी और विदुर से मिलने के लिए रथारूढ़ हो कर चले । साथ में आये हुए कर्ण को श्रीकृष्ण ने कहा ; ―― 66 'कर्ण ! कुंती देवी ने तुम्हें एक सन्देश भेजा है " उन्होंने कहा “ तुम मेरे पुत्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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