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________________ ५३२ तीर्थंकर चरित्र sof अपने ज्येष्ठ-बन्धु धर्मराज युधिष्ठिरजी की भावुकतापूर्ण नम्र बात, भीमसेन को रुचिकर नहीं लगी । वे तत्काल बोल उठे; " संजय ! हम दुर्योधन के साथ समझौता या सन्धि नहीं करेंगे। हमने उसके अत्याचार अत्यधिक सहन किये। उसके अपराधों और अपकारों की उपेक्षा कर के हमने विपत्ति में उसकी सहायता की और बचाया, फिर भी वह दुष्ट हमारे साथ शत्रुता का ही व्यवहार करता हैं । उसमें न नैतिकता है न कुलिनता । ऐसे अधर्मी के सामने झुकना या उपेक्षा कर के अनाचार को सफल होने देना, हमें स्वीकार नहीं है । हम उसकी युद्ध की इच्छा पूरी करने को तत्पर हैं। मुझे दुर्योधन की जंघा और दुःशासन की बांह तोड़ कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना तथा द्रौपदी के अपमान का बदला भी लेना ही है। अब यह युद्ध अनिवार्य बन गया है। अब बिना युद्ध के भी वह राज्य अर्पण करे, तो हमें स्वीकार नहीं होगा । हम अपनी पूर्व प्रतिज्ञा का पालन करेंगे ।" अर्जुन, नकुल और सहदेव ने भी भीमसेन के विचारों का उत्साहपूर्वक समर्थन किया। संजय यह सब सुन कर लौट गया। उसने पाण्डवों से हुई बात का विवरण धृतराष्ट्र को सुनाया । उस समय दुर्योधन भी वहाँ बैठा था। संजय की बात सुन कर दुर्योधन भड़का और चिल्लाता हुआ बोला ; -- " संजय ! तुझे उन भिखारियों के पास सन्देश ले कर किसने भेजा था ? तू क्यों गया था वहाँ ? क्या तू भी उनसे मिल गया है ? याद रख, मेरा भी प्रण है कि मेरी तलवार उनका रक्त पी कर ही रहेगी। मैं तुम्हारी इस कुचेष्टा को शत्रुतापूर्ण समझता हूँ ' इतना कह कर क्रोध में तप्त हुआ दुर्योधन वहाँ से चला गया । " दुर्योधन को धृतराष्ट्र और विदुर की हित शिक्षा Jain Education International saccho दूसरे दिन धृतराष्ट्र ने अपने भाई विदुर को बुला कर एकान्त में कहा ; 44 ' बन्धु ! विपत्तियाँ कुरु वंश पर मंडरा रही है । कुल-क्षय का निमित्त उपस्थित हो रहा है । दुर्योधन की मति में यदि परिवर्तन नहीं हुआ, तो युद्ध अनिवार्य हो जायगा । कोई ऐसा उपाय हो तो बताओ जिससे विनाश रुके । " ' बन्धुवर ! आपकी भूल का ही यह भयानक परिणाम है। आपको दुर्योधन के जन्म समय ही सावधान कर दिया था कि यह दुरात्मा अनिष्टकारी है। अभी ही इसका For Private & Personal Use Only -- www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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