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________________ धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर को सन्देश किककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक " बन्धु-वध और नर-संहार करने के लिए मेरा मन तत्पर नहीं होता । युद्ध में लाखोंकरोड़ों मनुष्यों का संहार हो जाता है । करोड़ों मनुष्य दुःखी हो जाते हैं । रोग-शोक, विनाश, दुष्काल और महामारी के भयानक दृश्य उपस्थित हो जाते हैं । युद्धजन्य क्षति वर्षों तक पूर्ण नहीं होती और सारा राष्ट्र दुःखी हो जाता है। इतना सब होते हुए भी दुर्देव से ऐसा होना अनिवार्य हो गया लगता है । अब मेरे नहीं चाहने पर टल नहीं सकता, तो मैं बाधक नहीं बनूंगा । तुम युद्ध की तैयारी करो । में भी तुम्हारे साथ हूँ।" धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर को सन्देश पाण्डवों के दूत का आगमन और दुर्योधन के दुर्व्यवहार की बात, धृतराष्ट्र ने सुनी, तो चिन्ता-मग्न हो गया। वह पाण्डवों की शक्ति और न्यायपक्ष को जानता था। उसके मन में पुत्र के भावी अनिष्ट की आशंका बस गई । पुत्र को समझाना उसे व्यर्थ लगा। वह किसी की हितशिक्षा मानता ही नहीं था। अपने पुत्र को विनाश से बचाने का और कोई मार्ग धृतराष्ट्र को दिखाई नहीं दिया. तो उसने अपने विश्वस्त सारथि संजय को युधिष्ठिर के पास भेजा और कहलाया;-- "वत्स युधिष्ठिर ! तू धर्मात्मा और नीतिवान् है और दुर्योधन दुष्ट है । दुर्योधन के सामने मेरी कुछ भी नहीं चलती। वह मेरी बात नहीं मानता, कदाचित् उसका अनिष्ट अवश्यंभावी हो । मैं तुझसे इतनी ही अपेक्षा रखता हूँ कि अपने विवेक को जाग्रत रख कर बान्धव-विग्रह से बचने का प्रयत्न करना । विग्रह, विनाश का कारण होता है । मैं तुझसे इतनी ही अपेक्षा रखता हूँ।" संजय के द्वारा धृतराष्ट्र का सन्देश सुन कर युधिष्ठिरजी बोले___ "बार्य संजय ! वृद्ध पिता को मेरा नमस्कार कर के निवेदन करना कि मेरा हृदय बान्धवों का विग्रह और वध से बचने में प्रयत्नशील रहता है। किन्तु दुर्योधन की नीति मेरा प्रयत्न निष्फल कर देगी। में अपनी ओर से शान्त रह कर, राज्य की मांग छोड़ सकता है। किन्तु मेरे भीमसेन आदि बन्धु अब सहन नहीं कर के अपना पराक्रम प्रकट कर के रहेंगे । अब वे मेरे रोके नहीं रुक सकेंगे। फिर भी मैं उनसे एकबार पुनः विचार करूँगा और जो सर्वसम्मत निर्णय होगा, उसी के अनुसार कर्तव्य निर्धारित करूँगा।" Jairt Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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