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________________ ५३० तीर्थकर चरित्र ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककद "पुरोहित ! तू बड़ा वाचाल है। तुझे अपनी बात संक्षेप में ही कहनी थी। अपनी ओर से उपदेश दे कर नीति सिखाने की आवश्यकता नहीं थी। अब मेरा उत्तर सुन । तू मेरी ओर से उन्हें कहना कि "इस प्रकार भीख माँगने से राज्य नहीं मिलता और ऐसे भटकते-भिखारियों को राज दिया ही नहीं जा सकता। उनके लिए हस्तिनापुर राज्य से दूर रहना ही श्रेयस्कर है। यदि उन्होंने किसी प्रकार का दुस्साह किया, तो बिना-मौत के मारे जावेंगे । में उन्हें कुचल दूंगा। उनके सहायक कृष्ण को भी मैं कुछ नहीं समझता । यदि वह भी अपनी बूआ और बहिनों के कारण उनका साथी बनेगा, तो इसका फल उसे भी भोगना पड़ेगा।" दुर्योधन के वचन पुरोहित सहन नहीं कर सका । उसने कहा__ “राजन् ! विवेक मत छोड़ों। पाण्डव महान हैं । न्याय-नीति और सत्य उनके जीवन में रग-रग में समाये हुए हैं। यद्यपि वे धोखा दे कर ठगे गए, तथापि अपने वचन पर दृढ़ रहे और राज्य छोड़ कर निकल गए। और एक आप हैं जो अपने दिये हुए वचन से फिर कर, कुरु-वंश को कलंकित कर रहे हैं। पाण्डवों के बल के सामने आप तुच्छ हैं और त्रि-खण्डाधिपति श्रीकृष्ण के प्रति आयकी क्षुद्र-भावना तो चिढ़े हुए बालक जैसी है। यह अपना सद्भाग्य समझो कि उन्होंने आपकी ओर वक्र-दृष्टि नहीं की। अन्यथा आपका इस प्रकार हस्तिनापुर के राज-सिंहासन पर बठा रहना और जीवित बचना असंभव हो जाता । आप पाण्डवों के शौर्य और श्रीकृष्ण के पराक्रम को जानते हुए भी विवेकहीन हो कर बक रहे हैं । यह दुर्देव का संकेत लगता है।" - " बस कर, ऐ वाचाल दूत ! अपनी सीमा से बाहर क्यों जा रहा है। नीच, अधम ! मृत्यु का भय नहीं है, क्या तुझे? प्रहरी ! निकालो, इस क्षुद्र वाचाल को।" __दूत को राजसभा से अपमानपूर्वक निकाल दिया गया । दूत से दुर्योधन का अभिप्राय जान कर श्रीकृष्ण ने कहा ;-- "दुर्योधन वीर है, हठी है और स्वार्थी हे । बिना युद्ध के राज्य देना वह कायरता मानता है । हठी मनुष्य टूट जाता हैं, परन्तु झुकता नहीं। अब वह शक्ति से ही झुकेगा, या टूट जायगा । अब आपको अपना कर्तव्य सोचना चाहिए।' श्रीकृष्ण की बात सुन कर भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव उत्तेजित हो कर, युधिष्ठिरजी से युद्ध की तैयारी करने के लिए आज्ञा देने का आग्रह करने लगे। युधिष्ठिरजी ने कहा-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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