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________________ अभिमन्यु-उत्तरा पारणय विराट नरेश पर पाण्डवों के महान् उपकार का भारी भार लदा हुआ था । वे इस उपकार से कुछ अंशों में भी उऋण होना चाहते थे । उन्होंने युधिष्ठिरजी से कहा-- "मेरी प्रिय पुत्री उत्तरा को अर्जुनजी ने संगीत की शिक्षा दी है । कृपया मेरी पुत्री अर्जुनजी के लिए स्वीकार करें, तो मैं अपने को कुछ अंशों में उपकृत मानूंगा।" --"राजन् ! उत्तरा तो मेरी शिष्या हो चुकी है। मैंने उसे शिक्षा दी है । अतएव पुत्री-तुल्य शिष्या से विवाह में नहीं कर सकता । यदि आपको देना ही है, तो मेरे पुत्र और सुभद्रा के आत्मज 'अभिमन्यु' को दीजिये"---अर्जुन ने कहा। अर्जुन की बात विराट नरेश को स्वीकार हो गई और युधिष्ठिरजी आदि बन्धुओं की भी सम्मति प्राप्त हो गई। अभिमन्यु का विवाह राजकुमारी उत्तरा के साथ होना निश्चित्त हो गया। युधिष्ठिरजी ने एक विश्वस्त दूत द्वारिका भेजा और सुभद्रा तथा अभिमन्यु को बुलाया, साथ ही श्रीकृष्ण को भी सपरिवार निमन्त्रित किया। श्रीकृष्णादि सभी विराटनगर आये। उनका पाण्डव-परिवार से बहुत लम्बे काल के बाद हुआ मिलन, अत्यन्त प्रेमपूर्वक तथा अवर्णनीय था । शुभ मुहूर्त में उत्तरा के साथ अभिमन्यु का लग्न, बड़े समारोहपूर्वक हुआ। लग्न के बाद भी पाण्डव-परिवार और श्रीकृष्ण बहुत दिनों तक विराट नरेश के आग्रह पर, वहीं रह कर आतिथ्य ग्रहण करते रहे। श्रीकृष्ण के आग्रह पर पाण्डव-परिवार द्वारिका आया । दशा) ने बहिन कुन्ती का स्वागत किया । वे सभी सुखपूर्वक रहने लगे। पति को वश करने की कला एक समय सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा-- • सखी ! मैं तो अपने एक पति को भी पूर्ण सन्तुष्ट नहीं रख सकती, तब तुम पांच पति को संतुष्ट किस प्रकार कर सकती हो? विभिन्न प्रकृति के पुरुषों को प्रसन्न एवं संतुष्ट रखना कितना कठिन पड़ता होगा ?" “सखी ! मुझे मेरी माता ने, पति को वश करने का मन्त्र दिया था। तदनुसार मैं साधना करती रही और इससे मेरे पाँचों पति मेरे वश में हैं । मैं सदैव मन, वचन और काफा से पति के अनुकूल रहती हूँ। मैं उनका समान रूप में, बिना किसी भेद-भाव के आदर-सत्कार करती हूँ और उनकी इच्छा के अनुसार व्यवहार करती हूँ । मैं अपने को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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