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________________ ५१६ तीर्थंकर चरित्र कुकुक्कुव a किसी नगर में सेवक के रूप में गुप्त रहना पड़ेगा। मेरा अनुमान है कि हमारा अनिष्ट चाहने वाले हमें वन में ही खोजेंगे। वे सोचेंगे कि जब पाण्डव बारह वर्ष तक हमसे छुपे रहने के लिए बन में रहे, तब अज्ञात वास तो वे किसी गहन और मनुष्य की पहुँच से बहुत दूर गिरी - कन्दरा में ही बितावेंगे और खाने-पीने के लिए फल आदि लेने को रात्रि के समय निकलेंगे, ' - इस प्रकार के विचार से वे हमें ढूंढ़ने के लिए वनों, पर्वतों और गुफाओं में भटकते रहेंगे। हमारा निवास किसी नगर में होने का तो वे अनुमान ही नहीं कर सकेंगे । हमें अपने नाम और रूप में परिवर्तन करना होगा। शक्ति का गोपन और कषाय का शमन करना होगा ।" " हम मत्स्य देश के विराट नगर चलेंगे और अपनी सैनिक विशेषता को छोड़ कर अन्य विशेष योग्यता के कार्यों का परिचय दे कर राज्य में स्थान प्राप्त करेंगे। हमें राजा और राज्याधिकारियों की मनोवृत्ति समझ कर उनके अनुकूल रहना और व्यवहार करना होगा । आवेश की झलक भी नहीं आने पावे, इसकी पूरी सतर्कता रखनी होगी । यह एक वर्ष, गत बारह वर्ष से भी अधिक कठिन रहेगा। यदि हमने अपनी समस्त वृत्तियों को धर्म के अवलम्बन से अंकुश में रखा, तो निश्चय ही सफल होंगे । अब अज्ञात वास में अपने नये नाम और काम बतलाता हूँ । (१) मैं 'कंक' नाम का पुरोहित बन कर विराट नरेश के समक्ष जाउँगा और परामर्शक ( सलाहकार ) के रूप में अपना परिचय दूंगा । (२) भीम का नाम ' वल्लव' होगा और यह एक निष्णात रसोइया बनेगा । (३) अर्जुन का नाम 'बृहन्नट' (वृहन्नला ) होगा और इसे संगीतज्ञ बनना होगा. साथ ही अपने को बंढ ( नपुंसक ) प्रसिद्ध करना होगा, जिससे अन्तःपुर में रह सके और द्रोपदी की रक्षा कर सके । (४) नकुल का नाम 'तुरंगपाल ' होगा । यह अश्व-परीक्षक बनेगा । (५) सहदेव का नाम ' ग्रंथिक' होगा, यह गोपाल होगा । (६) द्रौपदी का नाम 'सैरंध्री' और काम होगा महारानी की सेविका का । (७) मातेश्वरी को हम नगर के किसी भाग के एक घर में रखेंगे। ये स्वतन्त्र रहेगी और हम इनकी सेवा करते रहेंगे । यह तो हुआ हमारा जाहिर परिचय -जो हम पृथक् रहते हुए विभिन्न समय में राजा को देंगे और सर्वसाधारण में प्रचलित रहेगा। किन्तु अपने गुप्त व्यवहार के लिए सांकेतिक नाम क्रमशः -- "जय, जयंत, विजय, जयसेन और जयबल" होगा । हम सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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