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________________ ५०२ तीर्थंकर चरित्र Jain Education International कमल-पुष्पों को पा कर द्रौपदी अत्यन्त प्रसन्न हुई । किन्तु उसी समय उसकी दाहिनी आंख फड़की बौर वह उदास हो गई । उसने भीमसेन की ओर देखा । उसकी आँखें बार-बार फड़कने लगी । द्रौपदी की उदासी देख कर भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव उसका मनोरञ्जन करने के लिए उसे वन के रमणीय प्रदेश में ले गए और उसका खूब मनोरञ्जन कराया । वह भी प्रसन्न हो गई । कालान्तर में द्रौपदी ने पुनः कमल-पुष्पों की माँग की । भीमसेन सारे परिवार को ले कर सरोवर पर बाया । परिवार तो किनारे पर एक वृक्ष की छाया में बैठा और भीमसेन सरोवर में उतर कर जल- कीड़ा करने में लीन हो गया । उसकी जल-कोड़ा से सरोवर का पानी बहुत डोलायमान हुआ । फिर वह फूल तोड़-तोड़ कर, किनारे पर द्रौपदी की ओर फेंकने लगा और द्रोपदी फूलों को एकत्रित करने लगी । भीमसेन तैरता भी जाता था और पुष्प तोड़ कर किनारे भी फेंकता जाता था । अचानक भीमसेन जल में डूब गया— जैसे डुबकी लगाई हो । जब बड़ी देर तक भी वह बाहर नहीं निकला, तो सभी को चिन्ता हुई । कुन्ती और द्रौपदी रोने लगी । कुन्तीदेवी ने अर्जुन को पता लगाने का आदेश दिया और कहा – “ शीघ्र जाओ, कहीं किसी ग्राह (मगर) ने तो उसे नहीं पकड़ लिया ?" अर्जुन सरोबर में कूद पड़ा और तल की ओर गया, किन्तु वह भी फिर ऊपर नहीं आया। अर्जुन को गये बहुत देर हो गई, तो नकुल उतरा, उसके नहीं लौटने पर सहदेव उतरा, परन्तु वह भी लौट कर नहीं आया चारों गये सो गये ही । अब कुन्ती ने युधिष्ठिर को कहा - " धर्मराज ! तुम देखो भाई ! तुम धर्मात्मा हो । तुम्हारा प्रयत्न अवश्य सफल होगा ।" मरता की आज्ञा पाकर युधिष्ठिर भी सरोवर में उतरे और वे भी नहीं लोटे कुन्ती और द्रौपदी ने धर्म का सहारा लिया ऐसी स्थिति में दोनों अबलाएँ घबड़ाई ओ रोने लगी । सन्ध्या हो गई, अन्धकार बढ़ने लगा । अब वे क्या करें ? कुन्ती सम्भली बोर द्रौपदी से कहा- “ बेटी ! हमने कभी अपने धर्म को नहीं छोड़ा। हमने प्राणपण से धर्म का पालन किया । धर्म ही हमारी रक्षा करेगा और तेरा सुहाम सुरक्षित रखेगा। तेरी पुष्पमाला म्लान नहीं हुई । यह संतोष की बात है। अब हमें धर्म का ही सहारा है । ध्यानस्थ हो कर परमेष्ठि महामन्त्र का स्मर करो। मैं भी यही करती हूं।" दोनों निश्चल और एकाग्र हो कर महामन्त्र का स्मरण रुक्क For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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