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________________ कमल-पुष्प के चक्कर में बन्दी १०१ ककककककककककककककककककककककककक कककक्F FFFFFERE पुष्प यदि कुछ और मिल जाय, तो मैं आभूषण बना कर पहनूं।" द्रौपदी की इच्छा जान कर भीमसेन उठा-" में अभी लाता हूँ"-कहता हुआ उस दिशा में चला गया-जिस ओर से वह फूल लाया था। भीमसेन को गये बहुत समय बीत गया, परन्तु वह लोदा नहीं सभी लोग चिन्ता करने लगे । “अब क्या करें? कैसे पता लगावें? वह कहां होगा? किस दशा में होगा और उस पर क्या बीत रही होगी"-इस प्रकार सभी के मन में भाँति-भाँति के विकल्प उठने लगे। अजंन ने विद्या का स्मरण कर.जानने की इच्छा व्यक्त की, तो युधिष्ठिर ने कहा- 'नहीं साधारण-सी बात पर विद्या का प्रयोग नहीं होना चाहिए।" तब क्या किया जाय ? युधिष्ठिरजी ने हिडिम्बा का स्मरण किया। वह अपने पुत्र को लिये हुए आकाश-मार्ग से आ कर उनके सामने खड़ी हुई। युधिष्ठिर ने देखा कि हिडिम्बा अपने उत्संग में एक सुन्दर और मोहक बालक को लिये उपस्थित है बौर-प्रणाम कर रही है। युधिष्ठिर ने आशीर्वाद देते हुए पूछा-"यह प्यारा-सा बच्चा तुम्हारा ही है क्या ?" हिडिम्बा ने पुत्र को युधिष्ठिर की गोदी में देते हुए और नीची दृष्टि किये कहा--" मैं आपकी आज्ञा से अपने भाई के आवास में गई थी, उसके लगभग छह महीने बाद इसका जन्म हुआ है। यह आपके पाण्डव-कुल का है। इसका नाम 'घटोत्कच' है। में इसे इसके योग्य शिक्षा भी देती रहती हूँ।" युधिष्ठिर समझ गए कि यह भीमसेन का पुत्र है। उन्होंने और सभी पारिवारिकजनों ने उस बालक को बहुत प्यार किया। हिडिम्बा अपने पति को नहीं देख कर विचार में पड़ गई। यह तो वह पहले से ही समझ चुकी थी कि पाण्डव-परिवार पर किसी प्रकार की विपत्ति बाई होगी, तभी मेरा स्मरण किया गया है। अब उसने पूछा--' क्या आज्ञा है ? मैं क्या सेवा करूँ आपकी ?" --" भद्रे ! तुमने हम पर पहले भी अनेक उपकार किये और अब भी वैसा ही प्रसंग आ गया है। भाई भीमसेन, कमल-पुष्प लेने गया, वह अब तक नहीं लोटा। कहीं किसी विपत्ति में तो नहीं पड़ गया ? हम इसी बात से चिन्तित हैं। दूसरा कोई चारा नहीं देख कर मैंने तुम्हें कष्ट दिया है। अब तुम योग्य समझो वह करो"-युधिष्ठिरजी ने कहा। हिडिम्बा ने अपनी विद्या का स्मरण किया। तत्काल सभी ने भीमसेन को एक सरोवर में, पुष्प तोड़ कर संग्रह करते हुए देखा । सभी लोग भीमसेन को उसी प्रकार देख कर प्रसन्न होने लगे, जैसे अपने सामने ही फूल तोड़ रहे हों। हिडिम्बा ने उस सरोवर का स्थान और दूरी भी उन्हें बताई । सभी बानन्दित हुए। उनकी चिन्ता दूर हो गई। कुछ समय बाद भीम पुष्प ले कर आ गया। हिडिम्बा भी सबसे मिल कर अपने स्थान लौट गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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