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________________ तीर्थद्वार चरित्र था कि इन्द्र को भविष्यवेत्ता ने अर्जुन के द्वारा हमारा पराभव होना बताया था। इसलिए उसने अर्जुन को घेर कर शीघ्र मार डालने में ही अपनी भलाई समझी। शत्रु-दल पूरे वेग से अर्जुन के रथ को घेर कर बाग-वर्षा करने लगा । अर्जुन ने भी भीषण बाण-वर्षा की, परन्तु चतुर शत्रु-दल ने उसके सारे बाण बीच में ही काट डाले और शत्रु-दल का एक भी सैनिक घायल नहीं हुआ। अर्जुन चकित रह कर सोचने लगा। उसे द्रोणाचार्य की युक्ति स्मरण हो आई । उसी समय उसने रथ को छोड़ा पीछे हटाने की चन्द्रशेखर को आजादी। चन्द्रशेखर शंकित हुआ, परन्तु उसे आज्ञा का पालन करना पड़ा। रथ पीछे हटता हुआ देख कर शत्रु-दल अपनी विजय मानता हुआ और मूंछे मरोड़ता हुआ हर्षोन्मत्त हो गया। बस, इसी समय अर्जुन ने लक्ष्यपूर्वक भीषण बाण-वर्षा की, जिससे शत्रुओं के हाथ (मूंछ पर रहे हुए हाथ) और कंठ एक साथ बिंध गए और शत्रु-दल धराशायी हो गया। तलतालक और विद्युन्माली भी मारा गया। राजा इन्द्र विमान में बैठा, आकाश से युद्ध देख रहा था। वह अर्जुन की विजय और शत्रु का विनाश देख कर प्रसन्न हुबा । उसने और अन्य खेचरों ने अर्जुन पर पुष्प-वर्षों की और जय-जयकार किया। बड़े भारी उत्सव और समारोह के साथ अर्जुन का नगर-प्रवेश कराया। राजा इन्द्र ने अर्जुन से निवेदन किया-" यह सारा राज्य आप ही का है। मैं आपका सेवक हो कर रहूँगा।” अर्जुन ने इस आग्रह को अस्वीकार किया और वह राज्य का अतिथि बन कर रहा । राज्य के बहुत-से युवकों ने अर्जुन से धनुर्विद्या सीखी। अभ्यास पूरा होने पर गुरु-दक्षिणा देने को वे सभी उद्यत हुए, तो अर्जुन ने कहा--"जब मुझे आवश्यकता होगी, तब मैं आपकी सहायता लूंगा।" स्वजनों से मिलने अर्जुन गन्धमादन पर्वत पर गया। पाण्डव-परिवार उत्सुकतापूर्वक उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। अर्जुन के आगमन और वियोगकाल की घटनाओं का वर्णन सुन कर सभी प्रसन्न हुए। कमल-पुष्प के चक्कर में बन्दी पाण्डव-परिवार गन्धमादन पर्वत पर रह कर अपना समय व्यतीत कर रहा था। एक दिन वे परस्पर वार्तालाप करते हुए बैठे थे कि वायु से उड़ता हुआ कमल का एक फूल द्रौपदी की गोद में आ-गिरा । पुष्प की सुन्दरता और उत्तम सुगन्ध ने द्रौपदी को मोहित कर लिया। द्रौपदी उस एक पुष्प से संतोष नहीं कर सकी । उसने कहा-" ऐसे उत्तम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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