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________________ कुन्ती ओर द्रौपदी ने घम का सहारा लिया क्किककककककककककककककककककककककककाFFERRRRRRRRRR करने लगी। उनके ध्यान की धारा समस्त बारम-प्रदेशों में रम कर सबल होती गई। घोड़ी देर में उनके कानों में परिचित शब्द पड़े। एक दिव्यात्मा ने कुन्ती को प्रणाम करते हुए कहा--" माता ! इधर देखो ! आयके पुत्र प्रणाम कर रहे हैं।" दो-तीन बार कहने पर ध्यान भंग हुआ और अपने पाँचों पुत्रों (और द्रौपदी ने अपने पतियों)तथा एक प्रकाशमान दिव्य-पुरुष को देख कर दोनों महिलाएं प्रसन्न हुई। माता ने पुत्रों को छाती से लमा कर मस्तक चूमा। द्रौपदी पास ही खड़ी, उन्हें देख कर प्रसन्न हो रही थी। माता ने पूछा " पुत्रों ! तुम कहाँ रुक गये थे और ये दिव्य-पुरुष कौन हैं ?” --" माता! हम बन्दी हो गए थे। इन महानुभाव ने ही हमें मुक्त कराया। ये महानुभाव ही आपको हमारे बन्धन और मुक्ति का हाल सुनावेंगे"-युधिष्ठिर ने कहा। कुन्ती ने देव की ओर देखा । देव ने कहा; ____ "कल्याणी ! थोड़े समय पूर्व सौधर्मेन्द्र, वीतराग सर्वज्ञ भगवान के दर्शनार्थ जा रहे थे। मैं भी उनके साथ था। यहाँ आने पर अचानक विमान क गया। हम सभी ने आपको ध्यानस्थ देखा। देवेन्द्र ने अवधिज्ञान से आपकी और इन बन्दुबों की विपत्ति जानी और मुझे आदेश दिया कि “इन ध्यानस्थ महिलाओं में एक पाण्डवों की माता कुन्तीदेवी और एक पत्नी द्रौपदी है। पांचों पाण्डव, इस सरोवर के दोलन बौर पुष्प-चयन से नामकुमारेन्द्र के कोप-भाजन हो कर बन्दी हुए हैं। तुम उन नीतिमान् धर्मात्मा पाण्डवों को मुक्त करा कर, इन महिलाओं को संतुष्ट करो।” इन्द्र की आज्ञा से मैं नामकुमारेन्द्र के आवास में पहुंचा। वहाँ ये पांचों बन्धु बन्दी थे। भीमसेन ने सरोवर का खूब दोलन किया और बहुत-से पुष्प तोड़ लिये। यह सरोवर नागकुमारेन्द्र का प्रिय है। इसके दोमन से कुपित हुए नामकुम रेन्द्र के अनुचरों ने भीमसेन और क्रमशः पांचों बन्धुओं को आकर्षित कर हरण किया और बन्दी बना लिया।" पांचों बन्धओं को बन्दी बना कर नागेन्द्र के सम्मुख उपस्थित किया, तो इन्हें देख कर नागेन्द्र ने सोचा--"ये बलवान् और तेजस्वी युरुष कौन हैं ?" जिस समय इनके विषय में इन्द्र विचार कर रहा था, उसी समय में पहुँचा और मैने इनका परिचय देते हुए कहा-"ये मनुष्यों में उत्तम, न्याय-नीति और सदाचार से सम्पन्न तथा उत्तम पुरुष हैं । ये पाण्डु-पुत्र हैं और 'पाण्डव' कहलाते है। लोक में इनकी यश-पताका लहरा रही है। ये आदर करने योग्य हैं। सौधर्मेन्द्र ने मुझे इन्हें मुक्त करवाने के लिए आपके पास भेजा है। इनके मन में आपकी अवज्ञा करने का भाव नहीं था और ये यह न जानते थे कि इस जलाशय पर आपकी विशेष रुचि है। अनजान में सहज ही यह घटना घट गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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