________________
अर्जुन द्वारा तलतालव और विद्युन्माली का दमन কুকুৰুত্ব-কুক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্ককরুত্ব
करे । अब यहाँ से चल ही देना चाहिए ।” सारा परिवार चला और गन्धमादन पर्वत पर पहुँच कर उपयुक्त स्थान पर रुका। गन्धमादन पर्वत के पास ही इन्द्रनील पर्वत था। अर्जुन इस पर्वत पर, विद्या सिद्ध करने के लिए पहले भी आया था। इसबार भी अर्जुन युधिष्ठिर की आज्ञा ले कर, इन्द्रनील पर्वत पर, खेवरी-विद्या का पुनरावर्तन करने आया । विद्यादेवी प्रकट हुई और प्रसन्न हो कर वर मांगने का कहा । अर्जुन ने कहा
“जब मुझे शत्रुओं का दमन करते समय आपकी सहायता की आवश्यकता लगे और में आपका स्मरण करूं, तब मुझे सहायता करने के लिए आप पधारने की कृपा करें।"
अर्जुन को वचन दे कर देवी, लोट गई । सफलता से प्रसन्न हुआ अर्जुन, पर्वत के सुन्दर वन की शोभा देखता हुआ विचरण कर रहा था कि उसने एक मोटा और मदोन्मत्त वराह (सूअर) देखा । वह पायल था। उसके शरीर में एक बाण लगा था और इससे
अत्यन्त ऋद्ध हो गया था। अर्जुन ने उस पर अपना बाण छोड़ा और वह वराह, बाण लगते ही गिर कर मर गया। उसके निकट जा कर अर्जुन अपना बाण निकालने लगा। इतने में एक भयंकर आकृति वाला प्रचण्ड पुरुष वहाँ आया बोर अर्जुन को रोकता हुआ कोला
"अरे ओ ! इस वराह को मैंने मारा है और यह वाण मेरा है । मेरा बाण चुराते तुझे लज्जा नहीं आती?"
--" नहीं, यह बाण मेरा है । मैने इसे मारा है। में अपना ही बाण निकाल रहा हूँ। इसमें चोरी और लज्जा की बात ही क्या है"--अर्जुन ने कहा ।
-" नहीं, तू झूठ बोलता है । बाण मेरा है और मैं ही इसे लूंगा । तू यहाँ से टल जा"--आगंतुक ने रोषपूर्वक कहा ।
बात बढ़ गई और युद्ध का प्रसंग उपस्थित हो गया । आगंतुक ने धनुष पर बाण चढ़ाया । अर्जुन ने वराह के शरीर में से बाण खिंच कर शत्रु पर तान दिया। आगंतुक अकेला नहीं था। उसके साथ उसकी कुछ सेना भी थी, जो इधर-उधर बिखरी हुई थी। युद्ध में होती हुई गर्जना से वह सेना एकत्रित हो कर युद्ध में जुड़ गई । अर्जुन अकेला था। उसने परिस्थिति देख कर जो वाण-वर्षा की, तो शत्रु की सारी सेना भाग गई । अब दोनों वीर बाण-वर्षा से एक-दूसरे को पराजित करने लगे। किन्तु कोई भी दबने की स्थिति में नहीं था। एक-दूसरे के बाण सक्ष्य पर पहुंचे बिना, मार्ग में ही नष्ट हो जाते । अन्त में अर्जुन ने मुष्ठि-युद्ध चलाया । मुष्ठि-युद्ध में भी शत्रु अपनम रहा, तब अर्जुन ने शत्रु को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org