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________________ तीर्थकर चरित्र ककककककककककककककककककककककककककककरूस कस्यानाक्सक्स शाली वचनों के समर्थन में पुनः द्रौपदी बोली;-- ___ “नाव ! उठो, धर्मात्मापन को एकबार एक ओर रख कर शस्त्र संभालो । यदि आपको धर्म बाधक बनता हो, तो अपने बन्धुओं को इस बाधा से मुक्त कर दो। अब बिना विलम्ब किये शीघ्र उठो । जापको अनुज्ञा हम सब के लिए सुखप्रद होगी और दुष्टों को अपनी करणी का फल मिल जायया ।" द्रौपदी के वचनों ने भीमसेन को मौन तोड़ने पर विवश कर दिया । वह बोल उठा "पूज्य ! बब बाबा दे दीजिये । यापको आज्ञा हुई कि हमारी दुर्दशा और दुष्टों के अस्तित्व का अन्त बाया। बोलो, बोलो, शीघ्र बोलो।" । किन्तु धर्मराब तो मौन हो रहे । तब भीमसेन फिर बोले “अच्छा, बाप हमें शत्रु से लड़ने के लिए जाने की आज्ञा नहीं देते, तो इतनी छूट तो दीबिए कि वह हमारा अनिष्ट करने के लिए बादे, तो हम उसे उसके दुष्कृत्य का दंड दें? यदि बापने इतनी भी छूट नहीं दी. तो इस, में बापकी अवहेलना करने पर विवश हो जाऊँगा बोर अपने मन को करूंगा।" भीमसेन की बात का अर्जुन आदि सभी ने समर्थन किया । अब प्रसन्न होते हुए धर्मराज युधिष्ठिरवी बोले “धन्य है । क्षत्रियों के वंशजों में ऐसा ही शौर्य होना चाहिये । परन्तु बन्धुओं ! कुछ दिन और ठहर बाबो । वह दिन भी आने ही वाला है, जब तुम्हें दुष्टों को दमन करने और राज्य प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होमा । थोड़े वर्ष और सहन कर लो और मेरा वचन पूरा होने दो। फिर तुम दुर्योधन और दुःशासन से देवी के अपमान का भरपुर बदला लेना। फिर मैं तुम्हें नहीं रोकूगा और तुम्ह रा सहयोगी रहूँगन्ध । बस, कुछ वर्षों का कष्ट शान्ति से सहन कर लो--मेरे प्रिय बन्धुओं" साब शान्त हो गए और अपने-अपने काम में लग गए । प्रियंवद भी विदा हो गया । अर्जुन द्वारा तलतालव और विद्युन्माली का दमन दैतवन में थोड़े दिन ठहरने के बाद युधिष्ठिर ने कहा- अब यहाँ अधिक समय रहना उचित नहीं होगा, कदाचित् शत्रु को हमारी टोह लग जाय और वह उपद्रव खड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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