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सावधान रहो
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सकेंगे ? आप चिन्ता क्यों कर रहे हैं ? भटक-भटक कर अपनी आयु पूर्ण कर मर जाएंगे। कदाचित् उनके पापों ने उन्हें भटकते-भिखारी अवस्था में तड़प-तड़प कर मरने के लिए उस समय बचाया हो ? अब वे पुनः राज्य प्राप्त कर सकें, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। आप निश्चिन्त रहें।"
___शकुनि के शब्दों ने उसे कुछ आश्वस्त किया। इतने में दुःशासन और कर्ण भी वहाँ आ उपस्थित हुए। उन्हें भी पाण्डवों के बच निकलने का आश्चर्य तो हुआ, परन्तु उन्होंने भी शकुनि के समान दुर्योधन को निश्चिन्त रहने का आश्वासन दिया। विशेष में दुःशासन ने कहा;
___ "बन्धुवर ! आपके उत्तम शासन-प्रबन्ध ने प्रजा के मन को वशीभूत कर लिया है। आपके विशाल साम्राज्य की प्रजा. युधिष्ठिर को भूल गई और आपको पूजक बन चुकी है। भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य आदि भी बापके वशीभूत हैं। सारे साम्राज्य में आपका कोई विरोधी नहीं है । ऐसी दशा में उन पाँच भिक्षुओं की गिनती ही क्या, जो आपके महाप्रताप को धूमिल या खंडित कर सके ? आप भूल जाइए इस बात को और निश्चिन्त रहिए।"
शकुनि ने कहा-"हां, राजेन्द्र ! आप निश्चिन्त रहें। फिर हम तीनों, पाण्डवों का अस्तित्व मिटाने का उपाय करेंगे ही अतएव आप इस दुश्चिन्ता को निकाल दीजिए।"
दुर्योधन आश्वस्त हुआ और उठ कर अन्तःपुर में चला गया।
सावधान रहो
एकचक्रा नगरी के राज्य-अतिथि रहने के कुछ दिन बाद ही पाण्डव-परिवार, नगर छोड़ कर चल निकला। उनकी यशोगाथा चारों ओर व्याप्त हो गई थी। युधिष्ठिरजी ने कहा-"हमें जीवित जान कर दुर्योधन फिर कुछ विपत्ति खड़ी करेगा। इसलिए अब अपने को चल देना चाहिए।" वे सब चुपचाप निकल गए और द्वैत वन की ओर बढ़े।
पाण्डवों के प्रबल पराक्रम की यशोगाथा हस्तिनापुर में पहुंच गई और विदुरजी के भी सुनने में आई । विदुरजी को इससे चिन्ता हुई-" कहीं दुर्योधन उन्हें फिर विपत्ति में नहीं डाल दे।" उन्होंने पाण्डवों को सावधान करने के लिए अपने पूर्ण विश्वस्त दूत 'प्रियंवद' के साथ सावधान रहने का सन्देश भेजा। प्रियंवद चलता और पता लगाता हुआ
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