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राक्षस से नगर की रक्षा
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မိဖုရာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာ Pe कर हर्षनाद किया और भीमसेन की जयजयकार करने लगे । राजा ने भीमसेन से राक्षसवध का वृत्तांत पूछा । किन्तु वह मौन रहा । इतने में आकाशमार्ग से एक वृद्ध और एक युवक विद्याधर उतरे | उन्होंने भीमसेन से क्षमायाचना की । परिचय पूछने पर कहा" मैं राक्षसराज बक का मन्त्री हूँ। जब मेरे स्वामी ने इन पर खड्ग का प्रहार किया, तो खड्ग टूट गया। फिर ये उठ खड़े हुए और एक मुष्टि-प्रहार में ही मेरे स्वामी को गिरा दिया। थोड़ी देर में स्वामी सावधान होकर उठे और अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ इन पर प्रहार किया। ये धराशायी हो गए। मेरे स्वामी इनकी छाती पर चढ़ बैठे और घोर गर्जना की। फिर इन्होंने स्वामी को उछाल कर पटक दिया और उनकी छाती पर बैठ कर कहा--" राक्षसराज ! यदि तुम मानव हत्या नहीं करने की प्रतिज्ञा लेते हं, तो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ, अन्यथा आज मेरे हाथ से तुम्हारा जीवन समाप्त हो कर रहेगा ।" स्वामी ने क्रोधपूर्वक इनके वचन की अवहेलना की। फिर इन्होंने कहा
"
'अपने इष्टदेव का स्मरण कर ।" इतना कह कर एक मुष्टिका से उनके मस्तक पर प्रहार किया । बस, इसीसे उनका प्राणान्त हो गया। ये इनके पुत्र हैं और लंका में रहते हैं । इन्हें बुलाया गया । ये अपने पिता का वैर लेने को तत्पर हुए। मैंने इन्हें अपनी कुलदेवी का स्मरण कर के उनसे मार्गदर्शन लेने का परामर्श दिया । इन्होंने कुलदेवी का स्मरण कर आव्हान किया। कुलदेवी ने जो परामर्श दिया, वह ये महाबलजी आपसे निवेदन करेंगें।"
महाबल ने कहा--" देवी ने सुझ से कहा - " पुत्र ! तू वैर छोड़ कर पाण्डवों के पास जा और विनयपूर्वक उनको संतुष्ट कर। वे महाबली हैं। उनसे उलझना और पार पाना सहज नहीं है । मैने तेरे पिता को भी कहा था कि वह पाण्डवों से वैर नहीं करे | उनसे शत्रुता करना अपना विनाश करना है । अब तू पाण्डवों को संतुष्ठ कर । तेरा राज्य शान्तिपूर्वक चलता रहेगा। में देवी की आज्ञानुसार आपसे क्षमा याचना करता हूँ ।" इस प्रकार कहता हुआ महावल भीम के चरणों में झुका । भीमसेन ने उसे रोकते हुए कहा--" भद्र ! तुम मेरे पूज्य इन युधिष्ठिरजी को प्रणाम करो । में तो इनका सेवक हूँ । हां, और मनुष्यवध का त्याग कर दो ।"
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महाबल ने युधिष्ठिरजी को प्रणाम किया और हिंसा-त्याग की प्रतिज्ञा की । युधिष्ठिरजी ने उसे सान्त्वना दी। राजा प्रजा और देवशर्मा यह जान कर अवाक् रह गए कि यह ब्राह्मण परिवार ही पाण्डव-परिवार है, जिनकी हम आशा लगाए बैठे थे और उनके जल मरने की झूठी बात सुन कर निराश हो गए थे । देवशर्मा के हर्ष का तो पार ही नहीं
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