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तीर्थंकर चरित्र
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पर लेट गया । थोड़ी देर में राक्षस अपने साथियों के साथ आ पहुँचा। उसने भीम को देख कर विचार किया कि इतना तगड़ा मोटा और पुष्ट मनुष्य तो आज तक मुझे नहीं मिला । यह मनुष्य भी शान्त और निर्भीक हो कर, शान्ति के साथ सोया हुआ है । आज तक जितने भी आये, सब रोते-चिल्लाते और कल्पान्त करते हुए आते और तड़प-तड़प कर पछाड़े खाते रहते । यह मनुष्य उन सब से निराला है । इसके शरीर से मांस भी खूब मिलेगा । उसने भीमसेन के शरीर पर अपने बड़े-बड़े दाँत लगा कर मांस तोड़ना चाहा, परंतु जोर लगा कर भी वह अपने दाँत गढ़ा नहीं सका, उलटे उसके दाँत टूट गए । नख से नोचने लगा तो नख टूट गए। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । आज तक इतने ठोंस और दृढ़ शरीर वाला मनुष्य नहीं देखा था । उसने साथियों से कहा--" इसे उठा कर अपने स्थान पर ले चलो । वहां खड्म से काट कर खाएँगे ।" साथियों ने जोर लगाया, परंतु बे भीम को उठा नहीं सके । फिर बक ने स्वयं बल लगा कर उठाया और भवन में ले गया । उधर देवशर्मा इष्ट देव की पूजा कर के आया, तो भक्ष्य-सामग्री और भीम को नहीं देख कर घबड़ाया । ब्राह्मणी ने रोते हुए कहा--" वे नहीं माने और चले गये हैं ।" देवशर्मा भागा हुआ वन में आया और वध - शिला पर भीमसेन के स्थान पर उसकी गदा पड़ी हुई देख कर रुदन करने लगा । उसने समझ लिया कि राक्षस भीमसेन को खा गया है । देवशर्मा के पीछे-पीछे युधिष्ठिरजी आदि पाण्डव-परिवार भी आया और वे भी शोकाकूल हो कर रुदन करने लगे । युधिष्ठिरजी ने सब को शान्त करते हुए कहा--" कोई चिन्ता मत करो। राक्षस मेरे भाई को नहीं मार सकता। वह राक्षस को मार कर सकुशल लौटेगा ।" इतने में एक भयानक गर्जना हुई, जिसे सुन कर सभी का हृदय दहल गया । उन्हें भीम का जीवन सन्देहास्पद लगा । वे रुदन करने लगे । कुन्ती और द्रौपदी तो शोकावेग से मूच्छित ही हो गई । अर्जुन धनुष-बाण ले कर राक्षस को मिटाने के लिए जाने लगा और देवशर्मा और उसकी पत्नी तो जीवित ही जल-मरने के लिए तत्पर हो गए। उन्हें अपने बदले भीम का मरना असह्य हो रहा था। इतने में भीमसेन आते दिखाई दिये । सभी के मुरझाये हुए हृदय प्रफुल्लित हो गए और हर्षध्वनि निकली । भीमसेन ने आते ही माता और ज्येष्ठ भ्राता को प्रणाम किया और छोटों को छाती से लगाया । राक्षस की भयानक गर्जना से नगरी के लोग भी दहल गये । उन्हें विश्वास हो गया कि आज राक्षस का अन्त होने वाला है । उन्हें यह भी मालूम हो गया कि आज एक प्रचण्ड पुरुष हाथ में गदा ले कर राक्षस के पास गया था। नागरिकों का समूह वन में राक्षस भवन की ओर बढ़ा। राजा भी आया । सब ने भीम को सुरक्षित तथा प्रसन्न देख
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