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हिडिम्बा अहिंसक बनी
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बहिन बनाना चाहती हूँ। मेरा अनुरोध स्वीकार कीजिये।"
भीमसेन को स्वीकृति देनी पड़ी।
हिडिम्बा आहिंसक बनी
हिडिम्बा के साथ वहीं भीम का लग्न-सम्बन्ध जोड़ा गया। हिडिम्बा ने अपनी मायिक विद्या के बल से वहाँ एक सुन्दर वाटिका और मण्डप आदि की रचना की और भीम के साथ काम-क्रीड़ा करने लगी। कुछ दिन वहां रह कर यह दल आगे बढ़ा । हिडिम्बा गर्भवती हो गई थी। चलते-चलते यह दल एकचक्रा नगरी के निकट उपवन में पहुंचा। वहां एक महामुनि बिराजमान थे और उनके निकट नगर का धर्मप्रिय जन-समूह बैठा हुआ था । पाण्डव-परिवार को देख कर जन-समूह चकित रह गया । उनकी सुगठित देहकान्ति शोर्य, प्रस्फुटित मुखमण्डल और विशिष्ट व्यक्तित्व देख कर दर्शक आकर्षित हुए और विचार में पड़ गए । पाण्डव-परिवार ने महामुनि को उल्लासपूर्वक वन्दन-नमस्कार किया
और परिषद् में बैठ गए । महामुनि ने पाण्डवों को उद्देश्य कर धर्म-पुरुषार्थ का उपदेश दिया। धर्मोपदेश सुन कर हिडिम्बा विशेष प्रभावित हुई । उसने निरपराधी त्रस-जीव की हिंसा का त्याग किया। कुन्तीदेवी ने महात्मा को वन्दन कर के पूछा
“भगवन् ! मेरे पुत्रों का विपत्तिकाल मिटेगा या नहीं ?"
-"भद्रे ! तेरे पुत्र पुनः राज्य प्राप्त करेंगे और अन्त में निग्रंथ-प्रव्रज्या स्वीकार कर मुक्त हो जावेंगे"-महात्मा ने उज्ज्वल भविष्य बताया।
भविष्य-वाणी सुन कर सभी प्रसन्न हुए। धर्मोपदेश के बाद महात्मा विहार कर गए और जनता भी अपने-अपने स्थान चली गई।
कुन्तीदेवी के निर्देश मे युधिष्ठिरजी ने हिडिम्बा से कहा
"भद्रे ! तुमने हम सब पर बहुत उपकार किये हैं । तुम्हारी सहायता से हम सब ने सुरक्षित रह कर अटवी पार की । हमें तुम्हारा साथ आनन्ददायक रहा । परन्तु अब वियोग का समय आ गया । तुम गर्भवती हो, इसलिये अभी लौट कर तुम अपने स्थान पर जाओ और तुम्हारे भाई की सम्पत्ति तथा अपने गर्भ का पालन करो। हम अभी इस एकचक्रा नगरी में रहेंगे। हम जब तुम्हारा स्मरण करें, तब तुम आ कर हमसे मिलना।"
हिडिम्बिा ने भी यही उचित समझा और सभी से योग्य बिनय कर लौट गई। पाण्डव-परिवार ने भी ब्राह्मण का वेश बना कर नगरी में प्रवेश किया।
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