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________________ ४८६ तीर्थंकर चरित्र ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका आते हए नागराज की गति रुक गई । वह रेखा के निकट आ कर रुक गयाजैसे किसी ने उसे बरबस रोक रखा हो । कुछ क्षणों तक द्रौपदी को एकटक देख कर वह दूसरी ओर चला गया। पाण्डवौं की खोज व्यर्थ रही । सभी द्रौपदी के नहीं मिलने पर अनिष्ट की आशंका से शोकाकुल हो विलाप करने लगे। वे द्रौपदी के बिना जीवित रहना भी नहीं चाहते थे। उनकी दशा उस शक्तिहीन मानव जैसी हो गई कि जिसका समूचा रक्त खिच कर मात्र हड्डियों का ढांचा बना दिया गया हो । हिडिम्बा आकाश-मार्ग से खोज करने निकलो। उसके पास चाक्षुसी विद्या थी, जिससे वह रात्रि के गहनतम अन्धकार में भी दिन के प्रकाश की भांति देख सकती थी। उसने द्रौपदी को देखा, उसके सामने आई और उसे अपनी पीठ पर बिठा कर उड़ी । थोड़ी देर में वह पाण्डव-परिवार के समक्ष आ उपस्थित हुई । सभी की प्रसन्नता एवं साहस लौट आया। मुरझाये मन प्रफुल्लित हो गए। हिडिम्बा के उपकार से उपकृत बनी हुई कुन्तीदेवी बोली "बहिन ! तुम राक्षसी नहीं, देवी हो । तुमने हम सब पर जो उपकार किये हैं, उनका प्रत्युपकार हम किसी भी प्रकार नहीं कर सकते, फिर भी तुम बताओ कि हम किस प्रकार तुम्हारा हित साधे ?" "माता ! आप तो परोपकारी एवं धर्मात्मा पुत्रों की माता हैं और मैं तो राक्षसी हूँ। फिर भी मैं आपका अनुग्रह अवश्य चाहती हूँ। मैंने आपके पुत्र को अपने हृदय से वरण कर लिया है । यदि आपकी कृपा हो जाय और आपकी आज्ञा से वे मुझे स्वीकार कर लें, तो मेरा मनोरथ सफल हो जाय।" हिडिम्बा की बात सुन कर कुन्ती ने द्रौपदी की ओर देखा । द्रौपदी भी हिडिम्बा के उपकार-भार से दबी हुई थी। उसने कहा--"मैं हिडिम्बा को अपनी बहिन बनाना स्वीकार करती हूँ।" स्वीकृति होते ही कुन्तीदेवी, हिडिम्बा और द्रौपदी को ले कर भीम के निकट आई और प्रयोजन बतलाया । भीम ने अस्वीकार करते हुए कहा--" यद्यपि देवी हिडिम्बा ने हम पर महान् उपकार किये हैं, तथापि मेरा हृदय इस सम्बन्ध को स्वीकार नहीं करता।" ---"आर्यपुत्र ! माताजी ही नहीं, मैं भी अनुरोध करती हूँ। जिस देवी ने माता की और मेरी प्राण-रक्षा की, जो हमारे हित के लिए आने भाई का अपराधिनी बनी और जो हम पर स्नेह सिंचन कर हमें सुरक्षित रखती है, ऐमी देवी को मैं सदा के लिए अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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