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दिन आनन्दपूर्वक रहने के बाद एकदिन अचानक एक व्यक्ति ने आ कर युधिष्ठिरजी से
एकान्त में कहा;
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'विदुरजी ने कहलाया है कि आप सावधान रहें। आपको मारने के लिये ही दुर्योधन ने प्रेम-प्रदर्शन कर के यहाँ बुलाया है । इस भव्य भवन के निर्माण में सण, घास और तेल तथा लाख का उपयोग हुआ है । ये सब ज्वलनशील वस्तुएँ हैं । मुझे बहुत ही विश्वस्त सूचना मिली है कि आगामी कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात को यह भवन जला दिया जायगा । आप सब को मारने के लिए ही यह षड्यन्त्र रचा गया है । इस से बच कर निकलने के लिए विदुरजी ने एक विश्वस्त एवं कुशल सुरंग (भूगर्भ मार्ग) खोदने वाले को नियुक्त किया है । वह सुरंग खोद देगा, जिसमें से निकल कर आप निरापद स्थान पर जा सकेंगे ।"
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दुर्योधन का दुष्कर्म
अर्जुन, नकुल और सहदेव ने माने । उन्होंने कहा --
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युधिष्ठिर को दुर्योधन का षड्यन्त्र जान कर आश्चर्य के साथ क्रोध चढ़ आया । सन्देशवाहक को लौटा कर वे अपने बन्धुओं के निकट आये और षड्यन्त्र तथा काका विदुर के सुरंग के प्रबन्ध की बात कह सुनाई । सुनते ही क्रोधाभिभूत हो कर भीम बोला'बन्धुवर ! आज्ञा दीजिये, में उस दुष्ट की उस छाती को चीर दूं- जिसमें ऐसा महापाप भरा है और उस भेजे को फोड़ दूं-- जिसमें ऐसे षड्यन्त्र की योजना बनी है । आपकी आज्ञा होने की देर है, फिर तो में ऐसे महापातकी और कौरव-कुल-कलंक को इस भूमि पर से उठा दूंगा ।"
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भी भीम का समर्थन किया । किन्तु युधिष्ठिर नहीं
" बन्धुओं ! शान्त होओ ! वैसे ही अपने को तेरह वर्ष पूरे करने ही थे । हमारे पक्ष में न्याय है, धर्म है, सदाचार है और आप्तजनों तथा प्रजाजनों की भावनाओं का बल है । अवधि पूरी होने के बाद यदि दुर्योधन अपने वचन का पालन नहीं करेगा, तो मैं आपको आज्ञा ही नहीं दूंगा, स्वयं भी शस्त्र ले कर उससे लडूंगा । उसके पाप के घट को भरने दो और अपने पूर्व-संचित अशुभ कर्म को समाप्त होने दो, उतावल मत करो । सतर्क रह कर अपने व्यवहार को यथायोग्य बनाये रखो। जिससे किसी को भी किसी प्रकार का सन्देह नहीं हो । आज रात को हमें भी इस भवन की जाँच करनी है ।"
रात्रि के समय उन्होंने भवन की जाँच की, तो उन्हें वास्तविकता मालूम हो गई । वे सावधान हो गए । कुछ दिनों में सुरंग भी खुद कर तैयार हो गई । कुन्ती बौर द्रौपदी को सुरंग में चलने का अभ्यास कराया जाने लगा ।
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