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________________ ४८२ तीर्थङ्कर चरित्र চঞ্চৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰ ___ कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का दिन आया। दैवयोग से उसी दिन बाहर से एक वृद्धा अपने पांच पुत्रों और एक पुत्रवधू के साथ वहाँ आई और उसी भवन में रही । कुन्तीदेवी ने प्रेमपूर्वक उनको ठहराया और भोजन कराया । वे मार्ग के श्रम से थके हुए थे सो शीघ्र ही सो गए । अर्ध-रात्रि होने आई कि योजनानुसार, भीमसेन को छोड़ कर कुन्ती और द्रौपदी सहित चारों भाई सुरंग के मार्ग से चले गए। भीमसेन द्वार के समीप छुप कर टोह ले रहा था कि थोड़ी ही देर में पुरोचन पुरोहित आया और द्वार पर आग लगाई। छुप कर देख रहे भीमसेन ने झपट कर उसे पकड़ लिया और मुष्टि-प्रहार से प्राण-रहित कर वहीं पटक दिया और वह सुरंग से निकल कर बाहर चला गया। चलते समय वे सभी उन आगत यात्रियों को भूल गये । वे सभी प्राणी उग्र रूप से जलते हुए उस भवन में ही जल कर मर गए। भवितव्यता ही ऐसी थी। किन्तु इससे दुर्योधन और अन्य लोगों को यह जानने का कारण मिल गया कि प्रवासी पाण्डव-परिवार ही इस भवन में जल मरा है। पुरोचन पुरोहित का शव भी द्वार के निकट ही पड़ा था। वह पहिचान में आ गया। जनसमूह पाण्डव-परिवार को ही षड्यन्त्र का ग्रास होना मान कर शोकपूर्ण हृदय से आक्रन्द करने लगा और साथ ही दुर्योधन और पुरोचन को धिक्कारने लगा। ण्डव-परिबार सुरंग-मागे से निकल कर वन में आगे बढ़ा । चलते-चलते कुन्ती और द्रौपदी थक कर भूमि पर गिर पड़ी। यह देख कर युधिष्ठिर दुखित हो कर अपने दुर्भाग्य को धिक्कारने लगा और सारा दोष अपना ही मान कर संताप की ज्वाला में जलने लगा। यह देख कर भीम ने आश्वासन देते हुए कहा "पूज्य ! आप खेद नहीं करें। मैं इन्हें उठा लेता हूँ।" इतना कह कर उसने माता कुन्ती और द्रौपदी को अपने कन्धों पर बिठा लिया और आगे चलने लगा। कुछ दूर चलने के बाद नकुल और सहदेव भी थक कर बैठ गए । भीम ने अपने चारों भाइयों को पोठ पर लाद लिया और आगे चलने लगा। बलवान भीमदेव, हाथी के समान सब का वाहन बन गया । सूर्यास्त होने पर वे एक वृक्ष के नीचे रात्रिवास करने के लिए ठहर गए । + भीम के साथ हिडिम्बा के लग्न पाण्डव-परिवार, भयंकर वन में भटकता और थक कर श्रांत-क्लांत बना हुआ एक वृक्ष की छाया में बैठा । वन-फल खा कर क्षुधा शान्त की। किन्तु जलाशय निकट नहीं होने से प्यास नहीं बुझाई जा सकी। भीमसेन पानी की खोज में निकला । खोज करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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