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________________ अर्जुन द्वारा डाकुओं का दमन और विदेश-गमन . ४५७ stakavedisebabeitaseshetitesesesestetosedeobdesteededeseseshlesedesesedesiseaseskeseseseksevidedesevedeskedesesesese+ परस्पर स्नेह बना रहेगा । कुटुम्ब में शान्ति रहेगी, राज्य का हित होगा और धार्मिक मर्यादा का पालन करने के कारण व्रतधारी भी हो जाओगे।" नारदजी के उपदेश का श्रीकृष्णचन्द्रजी ने भी समर्थन किया । पाँचों पाण्डव प्रतिज्ञाबद्ध हो गए द्रौपदी भी पांचों के साथ समभावपूर्वक बरतने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हुई। नारदजी ने कहा-“मैं इसी विचार से यहां आया था कि तुम्हारे भातृ-प्रेम में द्रौपदी का निमित्त कहीं बाधक नहीं बन जाय, इसका उपाय करना चाहिए।" --" आप सम्प और शान्ति के उपासक कब से बने ? स्नेह एवं सम्प में संताप उत्पन्न कर के प्रसन्न होते हुए तो मैने आपको कई बार देखा है, परन्तु आज की आपकी बात मुझे तो अनहोनी ही घटित हुई लगी। कदाचित् पाण्डवों का भाग्य प्रबल है, जिससे आपको सद्बुद्धि सुझी । अन्यथा आपके मनोरञ्जन का तो यह एक नया साधन मिल गया था"--श्रीकृष्ण ने व्यंगपूर्वक नारदजी से कहा। -"जब ऐसी इच्छा होगी, तब वैसा भी किया जा सकेगा। वैसे पाण्डव मुझे प्रिय हैं । में इनका अहित नहीं चाहता । वैसे मुझे अपनी विद्या का प्रयोग करने के लिए तो सारा संसार है । इसकी चिन्ता मत कीजिए"-कह कर नारदजी चले गए। पांचों पाण्डव अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मर्यादा में रह कर द्रौपदी के साथ सुखपूर्वक रहने लगे और द्रौपदी भी निष्ठापूर्वक बिना किसी भेदभाव के पाँचों पाण्डवों के साथ व्यवहार करने लगी। जिस दिन जिसका वारा होता, वही वह रात द्रौपदी के आवास में जाता, दूसरा कोई भी वहां नहीं जाता। पांचों बन्धु राजकाज में भी यथायोग्य कार्य करते थे । उन सब का जीवन शांतिपूर्वक व्यतीत हो रहा था। अर्जुन द्वारा डाकओं का दमन और विदेश-गमन रात को सभी शयन कर रहे थे कि नगर में कोलाहल हुआ। राजभवन में पुकार हुई--"हमारा गोधन डाकू ले गए । स्वामिन् ! हम लूट गए । रक्षा करो भगवन् ! हम बिना मृत्यु के मर गए । हमारा क्या होगा ? डाकू-दल हमारे प्राण के समान आधारभूत गोधन हरण कर गए।" लोगों का झुंड रोताचिल्लाता पुकार करने लगा । अर्जुन ने लोगों की पुकार सुनी और तत्काल उठ कर बाहर आया । उसने लोगों को सान्त्वना देते हुए कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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