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________________ पांडवों की प्रतिज्ञा idesevededesbdeshposesisesedesksesesesesbsesesesksdededesevedeoeslesedesesesedesesedeodesosesidesesedropertiesesesesesesedesh ४५५ selectedietesear.... वेध देगा, उसी भाग्यशाली को मेरी बहिन वरण करेगी। जो इतनी कुशलता रखता हो, वह यहाँ आ कर अपना पराक्रम दिखलावे ।" सर्वप्रथम हस्तिशीर्ष नगर का राजा दमदंत उठा, किंतु उसी समय किसी ने छींक दिया। वह इस अपशकुन से शंकित हो कर बैठ गया। इससे बाद मथुरा नरेश उठ कर चले, किंतु अन्य राजाओं के हंसने और मखोल करने के कारण वे भी पुन: आसनस्थ हो गए। फिर विराट देश के राजा उठे, किन्तु धनुष, तेल, पुतली आदि देख कर और सफलता में सन्देह होने पर लौट गए। इसी प्रकार नन्दीपुर नरेश शल्य, जरासंध का पुत्र सहदेव आदि भी बिना ही प्रयत्न किये लौट गए । चेदी नरेश शिशुपाल ने प्रयत्न किया, परन्तु वह निष्फल हो गया । अब दुर्योधन से प्रेरित कर्ण उपस्थित हुआ । कृर्ण को देख कर द्रौपदी चिंतित हुई-“कहीं यह हीन-कुलोत्पन्न सफल हो गया, तो क्या होगा। सुना हैंयह उच्च कोटि का धनुर्धर है।" वह अपनी कुलदेवी को मना कर कर्ण के निष्फल होने की कामना करने लगी। द्रौपदी को चिन्तातुर देख कर प्रतिहारिणी बोली-" चिन्ता मत करो । कर्ण राधावेध की कला नहीं जानता है।" कर्ण भी निष्फल हुआ। अन्य कई प्रत्याशियों की निष्फलता के बाद दुर्योधन भी आया और निष्फल हो कर चला गया। अन्य नरेश राधावेध की कला नहीं जानते थे, सो वे उठे ही नहीं। इसके बाद पाण्डवों की बारी आई । पाण्डवों को देखते ही द्रौपदी मोहित हो गई । वह उनकी सफलता की कामना करने लगी। प्रतिहारी की प्रशंसा ने द्रौपदी का मोह विशेष बढ़ाया और वह आशान्वित हुई । अर्जुन ने धनुष को उठा कर चढ़ाया। युधिष्ठिरादि चारों भाई अर्जुन के चारों ओर अपने शस्त्र ले कर रक्षा करने के लिए खड़े हो गए । अर्जुन धनुष पर बाण लगा कर तेलपात्र में पुतली को बाँयीं आँख से देखने लगा और दृष्टि स्थिर कर के बाण छोड़ दिया। पुतली की बाँयीं आँख बिध गई । सभासदों ने अर्जुन की मुक्त-कंठ से प्रशंसा की। युधिष्ठिरादि बन्धु, अर्जुन को छाती से लगा कर हर्षोद्गार व्यक्त करने लगे। उस समय द्रौपदी की पहिनाइ हुई वरमाला पाँचों बन्धुओं के गले में आरोपित हो गई +। पाण्डवों की प्रतिज्ञा विवाहोपरान्त द्रौपदी को ले कर पाण्डव हस्तिनापुर आये और हस्तिनापुर में + द्रौपदी के पूर्वभव, निदान तथा लग्न का वर्णन पृ. ४.४ से ४१५ तक भी हुआ है। तहस्तिनापुर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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