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तीर्थङ्कर चरित्र
नहीं । आपको ऐसा सोचना ही नहीं चाहिये । वैसे आप की इच्छा हो, तो मैं मल्ल-युद्ध के लिए तत्पर हूँ ।"
दुर्योधन तो भड़का हुआ ही था, वह उठ खड़ा हुआ । युधिष्ठिर ने उसे समझाया, परन्तु वह नहीं माना और उलझ गया । दर्शकों की भीड़ एकत्रित हो गई । बहुत देर तक दोनों का द्वंद्व चलता रहा । अंत में दुर्योधन थक कर जोर-जोर से हॉफने लगा । उसका चेहरा मुरझा गया, पसीना झरने लगा, शरीर शिथिल हो गया और कुश्ती की चेष्टा ही रुक गई । भीम ने उसे छोड़ दिया । इस हार ने दुर्योधन को पाण्डवों का शत्रु बना दिया । अब वह भीम का जीवन ही समाप्त करने के अवसर की ताक में रहने लगा। उसने समझ लिया था कि महाबली भीम और महाधनुर्धर अर्जुन के रहते में राज्याधिपति नहीं हो सकूँगा । ये युधिष्ठिर की सुदृढ़ भुजाएँ हैं । ये टूटी कि फिर युधिष्ठिर से राज्य हड़पना सरल हो जायगा । सब से पहले भीम का काँटा तोड़ना चाहिए ।
भीम गाढ़ निद्रा में सोया हुआ था कि दुर्योधन ने उस पर कई विषधर छुड़वा दिये । नागों ने उस के शरीर पर कई दंस दिये, परन्तु भीम की वज्र देह पर कुछ भी असर नहीं हुआ । भीम ने जाग्रत हो कर उन भयंकर सर्पों को पकड़ कर झुलाते हुए एक ओर डाल दिये । इस निष्फलता के बाद भीम के भोजन में तीव्र विष मिला कर खिलाया गया, परन्तु वह भी उसके शरीर के लिए गुणकारी रसायन के रूप में परिवर्तित हो गया । इस प्रकार दुर्योधन के अन्य षड्यन्त्र भी, भीम के प्रबल पुण्य के शान्त किन्तु प्रखर तेज से, सहज ही नष्ट-भ्रष्ट हो गए और भीम, दुर्योधन की दुष्टता जान कर भी उन्हें विनोदी रूप दे कर टालता रहा । उसने अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ा ।
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कृपाचार्य और द्रोणाचार्य
कौरव और पाण्डव के शिक्षा - गुरु थे - कृपाचार्य । कृपाचार्य, कौरव पाण्डव और अन्य राजवंशी कुमारों को शिक्षा दे रहे थे । शब्द-शास्त्र, साहित्य, काव्य, गणित, अर्थशास्त्र लक्ष्यवेध, शस्त्र प्रयोग, मल्ल युद्ध, राजनीति आदि विविध प्रकार की विद्या सिखा कर छात्रों को निपुण बना रहे थे । एकदिन सभी विद्यार्थी गेंद खेल रहे थे । खेल-खेल में गेंद कुएँ में गिर गई और उसे निकालने के सारे प्रयत्न व्यर्थ गए । कन्दुक नहीं निकलने से खेल रुक गया । छात्र चिन्तित से खड़े थे । इतने में वहाँ एक भव्य आकृति वाले वृद्ध
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