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भीम को मारने का षड्यन्त्र
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भीष्मदेव के अधीन रह कर वे सभी कुशल कलाविद हो गए थे । इतना होते हुए भी अयोपशम की विशेषता से पाण्डवों में कला विशेष रूप से विकसित हुई थी । वे ज्येष्ठजनों के प्रति आदर-सम्मान रखते थे। न्याय, नीति और धर्म में उनकी निष्ठा थी । लोकव्यवहार में वे सब के साथ मधुर सम्बन्ध रखते थे।
कौरव-पाण्डव बन्धुओं का शारीरिक विकास भी अद्भुत हुआ था। वे परस्पर मल्ल-युद्ध करते, विविध प्रकार के दाव-पेच लगा कर पटकनी देने की चेष्टा करते, किन्तु इस कला में भीमकुमार सर्वोपरि रहते । मल्ल-यद्ध में उनसे कोई नहीं जीत सकता था। भीम की इस विशेषता से दुर्योधन जलता था, परन्तु भीम की प्रीति तो सब के साथ समान रूप से थी। भीम असाधारण बलवान था। वह अनेक युवकों के हाथ-पांव पकड़ कर या बगल में दबा कर जोरदार चक्कर देता, कभी बगल में दबाये हुए या कन्धे पर उठा कर लम्बी दौड़ लगाता, पर्वत पर चढ़ जाता । एक झटके में बड़े-बड़े वृक्षों को उखाड़ फेंकता । भीम की इस विशेषता ने दुर्योधन के मन में ईर्षा एवं द्वेष उत्पन्न किया । भीम के बल की प्रशंसा, दुर्योधन की ईर्षाग्नि में घृत हो गई । वह भीम के साथ-साथ पाण्डवों का भी बैरी हो गया ।
भीम को मारने का षड्यन्त्र
दुर्योधन, भीम को अपना बैरी समझ कर समाप्त करना चाहता था। वह अवसर की ताक में था। किन्तु भीम सरल हृदयी, निष्कपट एवं भद्र युवक था । उसके मन में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं थी। परन्तु जब वह कसरत, बल-प्रयोग या मल्ल-द्वंद में प्रवृत्त होता. तब अपने-आप उसमें इतनी शक्ति स्फूर्ति एवं निपुणता प्रकट हो जाती कि फिर उमन कोई पार नहीं पा सकता था। ईर्षाग्नि में जल कर एकबार दुर्याधन ने भीम को नुनीनी देते हुए कहा;--
__ “भीम ! यदि तुझे अपने बल का गर्व है, तो मुझसे मल्लयुद्ध कर। मैं तेर गर्व चूर-चूर कर दूंगा । तू मेरे छोटे भाइयों को दबा कर घमण्डी बन गया है, परन्तु मैं तेरे बल का मद उतार दूंगा।"
“भाई ! आप यह क्या कहते हैं ? मैं, आप पर और मेरे इन भाइयों पर घमण्डी हँ क्या? नहीं, नहीं, ऐसा मत कहिये । कुश्ती और द्वंद के समय की बात छोड़िये । उस समय तो अपनी सफलता के लिये चेष्टा करता हूँ। यह स्वभाव से ही होता है, द्वेष या ईर्षा से
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