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तीर्थङ्कर चरित्र
धारण कर पृथ्वी पर शासन करने की भावना उठने लगी । गर्भकाल पूर्ण होने पर एक देदीप्यमान बालक का जन्म हुआ। इसका नाम 'अर्जुन' रखा और स्वप्न में इन्द्र का दर्शन होने से दूसरा नाम 'इन्द्रपुत्र' भी कहा जाने लगा ।
पाण्डु राजा के 'माद्री' नाम की दूसरी रानी के गर्भ से युगल पुत्र का जन्म हुआ । इनका नाम ' नकुल' और 'सहदेव' हुआ। ये भी सुन्दर, प्रभावशाली और वीर हुए ।
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इस प्रकार पाण्डु राजा के पाँच पुत्र 'पाण्डव' के नाम से विख्यात हुए ! पाँचों बन्धु, परस्पर स्नेह रखते थे । छोटे-बड़े का आदर, विश्वास और अभेद भावना से पाँचों का काल निर्गमन होने लगा ।
कौरवों की उत्पत्ति
धृतराष्ट्र की रानी गान्धारी भी गर्भवती हुई । जब कुन्ती के गर्भ में युधिष्ठिर उत्पन्न हुआ, तब गान्धारी के भी गर्भ रहा था । किन्तु गान्धारी के गर्भ को तीस मास होने पर भी उसके बाहर आने के कोई चिन्ह दिखाई नहीं दे रहे थे । इससे गान्धारी बड़ी दु:खी थी । उसे शारीरिक दुःख के साथ मानसिक क्लेश भी था। वह सोचती थी कि'यदि उसके पुत्र पहले होता, तो वह पाण्डु के बाद राजा होता । मेरा दुर्भाग्य कि कुन्ती के साथ ही गर्भवती होने पर भी कुन्ती के एक पुत्र हो गया और दूसरे का जन्म होने वाला है, तब यह प्रथम गर्भ भी अभी मेरा पिण्ड नहीं छोड़ रहा है । इस पत्थर के कारण मेरा शरीर स्वास्थ्य और रूप-रंग बिगड़ा, मेरी प्रतिष्ठा गिरी और मैं क्लेशित हुई । अब भी यह पत्थर मेरी छाती पर से हटे, तो मैं सुखी बनूं । कैसी दुष्टात्मा है यह ! मैं कैसी हतभागिनी हूँ ! हा, दैव ! " इस प्रकार संताप में दग्ध होती हुई गान्धारी ने मुक्के मार कर अपना पेट कूट डाला । पेट कूटते ही गर्म छूट कर बाहर आ गया । वह अपरिपक्व था । गान्धारी को उस पर द्वेष हो गया । उसने दासी से कहा-- ' इसे यहाँ से ले जा और फेंक आ ।" दासी वृद्ध एवं अनुभवी थी। उसने कहा"स्वामिनी ! आपने यह क्या कर डाला अब भी यह केवल मांस का निर्जीव लोथड़ा नहीं है, यह जीवित है और यत्नपूर्वक पालन करने से जीवित रह कर एक होनहार पुत्र हो सकता है । आपको इस प्रथम फल की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । अब भी इसका गर्भ के समान ही पालन किया जा सकता है ।"
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