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________________ कौरवों की उत्पत्ति वनयकचकचकचकन्यापक्कानपञ्चकमककककककककककनवलपवनकवलकककककककककराल गान्धारी को दासी की बात उपयुक्त लगी । उसने दासी से गर्भ-पालन का उपाय पूछा । दासी ने घृत में लिप्त रुई में उस गर्भ को लपेटा और सँभाल कर रख दिया और गान्धारी से बोली "स्वामिनी ! आप विश्वास रखें, यह जीव, गर्भ के समान सुरक्षित रह कर आपकी पूत्रेच्छा पूर्ण करेगा । मेरी नम्र प्रार्थना है कि आप मन को शान्त रखें। रानी कुन्ती पर द्वेष नहीं करें। यह तो अपने-अपने कर्मों का फल है । आप भी कुन्तीदेवी के समान धर्म का आचरण करें, तो आपके शुभ कर्मों की पूंजी बढ़ेगी। पाप से सदैव बचती रहें, तो कभी दुःख देखने की स्थिति ही नहीं बने ।" दासी समझदार और धर्मिष्ठ थी। उसकी बात गान्धारी ने स्वीकार की। पतित गर्भ का पालन सावधानीपूर्वक होने लगा । जिस दिन गांधारी के गर्भपात हुआ, उसी दिन तीन प्रहर बीतने के बाद कुन्ती के गर्भ से भीम का जन्म हुआ। गांधारी का गर्भपात हुआ, तब ग्रहस्थिति अगुभ थी और भीम का जन्म शुमलग्न में हुआ था। महाराजा पाण्डु ने दोनों बालकों का जन्मोत्सव मनाया । गान्धारी के पुत्र का नाम दुर्योधन' रखा। दुर्योधन और भीम बढ़ने लगे। धृतराष्ट्र के गांधारी के अतिरिक्त सात रानियाँ और थीं। उसके दुर्योधन के बाद ९९ पुत्र हुए। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं ;-- ___ दुःशासन, दुःसह, दुःशल, रणश्रांत, शमाढय, विन्द, सर्वसह, अनुविन्द, सुभीम, मुबाहु, दुःप्रघर्षण, दुःर्मर्षण, सुगात्र, दुःकर्ण, दुःश्रवा, वैरवंश, विकीर्ण, दीर्घदर्शी, सुलोचन, उपचित्र, विचित्र, चारुचित्र, शरासन, दुमर्द, दुःप्रगाह, युयुत्सु, विकट, उर्णनाभ, सुनाभ, नन्द, उपनन्द, चित्रबाण, चित्रवर्मा, सुवर्मा, दुर्विमोचन, अयोबाहु, महाबाहु, श्रुतवान्, पद्मलोचन, भीमबाहु, महाबल, सुषेण, पंडित, श्रुतायुध, सुवीर्य, दण्डधार, महोदर, चित्रायुध, निषंगी, पाश, वृन्दारक, शत्रुजय, शक्रशह, सत्यसंध, सुदुःसह, सुदर्शन, चित्रसेन, सेनानी, दुःपराज्य, पराजित, कुंडशायी, विशालाक्ष, जय, दृढ़हस्त, सुहस्त, वातवेग, सवर्चस, आदित्यकेतु, बह्रवासी, निबन्ध, प्रमादी, कवची, रणशौंड, कुंडधार, धनुर्धर, उग्ररथ, भीमरथ, शूरबाहु, अलोलुप, अभय, रौद्रकर्म, दृढ रथ, अनाधृष्य, कुंडभेदी, विराजी, दीर्घलोचन, प्रथम, प्रमादी, दीर्घालाप, वीर्यवान, दीर्घबाहु, महावृक्ष, दृढ़ वृक्ष, सुलक्षण, कनक, कांचन, सुध्वज, सुभुज और विरज । ___ गांधारी के दुःशल्या नाम की एक पुत्री हुई। धृतराष्ट्र के ये सभी पुत्र 'कौरव' कहलाये। ये सभी कला-निपुण, बलवान् और पराक्रमी थे । पाण्डव और कौरव सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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