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________________ ४२१ Sesesesesesesesesedesesesesesistakesesedesesessfestedededeserveedeodesisterestendedesentedisesertedtestretcheshtadesdesident गांगेय का पिता से युद्ध और मिलन दौड़ने लगा। उस उपवन में कभी-कभी चारण निग्रंथ विचरण करते हुए आ जाते थे। उस समय रानी उन महात्माओं से स्वयं धर्मोपदेश सुनती और कुमार को भी साथ रख कर सुनवाती। महात्माओं के उपदेश से प्रभावित हो कर कुमार ने निरपराधी जीवों की हिंसा का त्याग कर दिया। उसने आश्रम की सीमा बढ़ा कर, उतनी लम्बी-चौड़ी कर ली कि जितने में उसके पालतु मृग आदि निर्भय हो कर सुखपूर्वक विचरण कर सके । उस सीमा में कोई शिकारी प्रवेश नहीं कर सकता था। उस उपवन के पशुओं को वह अपने आत्मीयजन के समान मानता था। पशु-पक्षी भी उससे प्रेम करते थे। स्वच्छ एवं निर्मल वायुमडल में उसके आरोग्य और बल में भी वृद्धि हो गई थी। उसका शस्त्राभ्यास भी बढ़ रहा था। एकदा शिकारियों ने आ कर उस उपवन को घेर लिया। मग आदि पश भयभीत हो कर इधर-उधर भागने लगे। गांगेय ने देखा--रथारूढ़ एक भव्य पुरुष, धनुष-बाण लिये शिकार की ताक में लगा है। अन्य मनुष्य, पशुओं को डरा कर उसके निकट-उसके निशाने की परिधि में ला रहे हैं। वह शंकित हुआ और धनुष-बाण लिए रथ की ओर जाता हुआ, दूर से ही बोला ; "सावधान ! यहाँ शिकार नहीं खेला जाता । अपना बाण उतार कर तरकश में रखिए।" राजा ने देखा--एक दिव्य-प्रभा वाला किशोर उनकी ओर चला आ रहा है। उसका मस्तक शिखर के समान उन्नत, चेहरा तेजस्वी और आकर्षक, वक्षस्थल विशाल, भुजाएँ पुष्ट और घुटने तक लम्बी यावत् सभी अंगोपांग शुभ लक्षण से युक्त हैं । ऐसा प्रभावशाली भव्य किशोर उसने आज तक नहीं देखा था। उसे देखते ही वह शिकार को भूल कर उसी को निरखने लग गया। उसके मन में प्रीति उत्पन्न हुई। कुछ समय वह स्तब्ध रहने के बाद सम्भला। गांगेय का पिता से युद्ध और मिलन “ मैं यहाँ शिकार खेल रहा हूँ। तुम मुझे रोकने वाले कौन हो"-राजा ने कहा। " आपको ऐसा क्रूर और हिंसक खेल नहीं खेलना चाहिए। अपने खेल के लिए गरीब पशुओं की हत्या करना, मनुष्यता के विरुद्ध-राक्षसी-कृत्य है"--गांगेय ने कहा। -"तू मुझे उपदेश देने वाला कौन है ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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