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________________ ४२० तीर्थकर चरित्र " रत्नपुर नरेश रत्नांगद की रत्नवती रानी से उत्पन्न यह पुत्री है । कोई दुष्ट पुरुष इसे यहाँ रख गया है । हे नाविक ! तू इस बालिका का पालन-पोषण करना । यह राजकुमारी है और यौवन-वय प्राप्त होने पर, हस्तिनापुर नरेश शान्तनु की रानी होगी।" __ उपरोक्त वाणी ध्यानपूर्वक सुन कर, नाविक प्रसन्न हुआ और पुत्री को घर ला कर पत्नी को दिया। वह भी बहुत प्रसन्न हुई । उसका लालन-पालन बड़ी सावधानी से होने लगा। वह दिनोदिन बढ़ने लगी। उसकी आभा, कान्ति, सौन्दर्य और स्त्रियोचित गुणों में वृद्धि होने लगी। नाविकों के परिवार-समूह में वह अनोखी सुन्दरी थी। उस सारी जाति में उसके सदृश एक भी युवती नहीं थी । वह उस नाविक जाति के, अन्धेरी रात के समान कुरूप मनुष्यों में चाँद के समान प्रकाशित हो रही थी । वह जिधर भी जाती, लोगों में हलचल मच जाती। लोग उसे घेरे रहते । उसका आकर्षण चारों ओर व्याप्त था। नाविक को उसका विवाह करने की आवश्यकता अनुभव हुई । यद्यपि वह सत्यवती का विरह नहीं चाहता था, तथापि विवाह तो करना ही होगा, यह बात वह समझता था । उसको वह भविष्य-वाणी याद थी, जिसमें कहा गया था कि--'यह कन्या हस्तिनापुर के नरेश शान्तनु की रानी होगी। इसलिए वह आश्वस्त था। समय बीत रहा था। गंगा और गांगेय का वनवास पति से विरक्त हो कर, गृह-त्याग करने के बाद महारानी गंगा अपने पीहर रत्नपुरी गई । वहाँ धर्मसाधना और पुत्र-पालन में समय व्यतीत करने लगी। गांगेय कुमार ने पाँच वर्ष तक अपने मामा विद्याधरपति पवनवेग के सान्निध्य में रह कर विद्या और कला का अभ्यास किया। वह विद्याधरों के बालकों के साथ खेलता था, किन्तु उसका तेज उन सभी बालकों से निराला और अद्वितीय था। उसने सभी विद्याएँ सरलतापूर्वक प्राप्त कर ली। गांगेय ने अपने मामा से धनुर्विद्या में ऐसी निपुणता प्राप्त की कि जिसे देख कर वह महान् धनुर्धर भी चकित रह गया । वय के साथ बलवृद्धि होती गई और कार्यकलाप बढ़ते गये । उसकी चेष्टाओं और प्रभाव से परिवार के समवयस्क बालक ही नहीं, बड़े लोग भी आशंकित रहने लगे। यह देख कर उसकी माता गंगारानी, पुत्र सहित भवन छोड़ कर उपवन में-उसी स्थान पर आ कर रहने लगी--जहाँ विवाह के पूर्व रहती थी। वह आश्रम फिर से बस गया । अब गांगेय, वन के पशुओं और पक्षियों के साथ खेलने और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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