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राजकुसारी गंगा का प्रण
निश्चय किया है कि मैं तेरे लिए स्वयंवर का आयोजन करूँ । उसमें सम्मिलित होने वाले राजाओं और राजकुमारों में से अपने योग्य वर का तू स्वयं चुनाव कर ले । तू जिसके गले में वरमाला पहनाएगी, वही तेरा पति होगा ।"
पुत्री को अन्तःपुर में भेजने के बाद द्रुपद नरेश ने राजाओं, राजकुमारों और साम-न्तादि को आमन्त्रण दे कर स्वयंवर का आयोजन किया । इस सभा में राजकुमारी द्रौपदी ने जो पाँच पाण्डवों को वरण किया, वह इसके पूर्वोपार्जित निदान का फल है । यह अन्यथा नहीं हो सकता । अतः आश्चर्यान्वित या विस्मित नहीं होना चाहिए ।" मुनिराज श्री के कथन से सभा आश्वस्त हुई और द्रौपदी का पाण्डवों के साथ समारोहपूर्वक लग्न हो गया ।
राजकुमारी गंगा का प्रण
गन्धर्व नगर के राजा 'जन्हु' की पुत्री गंगा, विदुषी और गुणवती थी। वह संसारव्यवहार और धर्माचार की भी ज्ञाता थी । यौवनवय में उसके योग्य वर के विषय में राजा चिन्तित हुआ । राजा ने एकबार पुत्री के सामने अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा"पुत्री ! मैं तेरे योग्य वर की खोज में हूँ । परन्तु मेरे मन में शंका उठ रही है कि कदाचित् मेरा चुना हुआ वर तेरे उपयुक्त होगा, या नहीं ? इसलिए अच्छा होगा कि तू शान्ति से विचार कर के अपना अभिप्राय बतला दे "
राजकुमारी नीचा मस्तक किये खड़ी रही । राजा के चले जाने के बाद राजकुमारी की सखी ने कहा- "अब तुम्हें अपनी इच्छा बतला देनी चाहिए, जिस अपनी इच्छानुसार वर प्राप्त कर सको ।"
-"मैं पिताश्री के सामने अपने वर के विषय में कैसे कह सकती हूँ ? परन्तु में चाहती हूँ कि मेरा पति सद्गुणी हो, सुशील हो, शूरवीर हो और मेरी इच्छा के अनुकुल रहने वाला हो, तभी मेरा वैवाहिक जीवन सुखी हो सकता है । मैं देखती हूँ कि अनुकूलता के अभाव में कई राजकुमारियाँ दुखी रह रही है। इसलिए में तो सद्गुणी, सच्चरित्र एवं मेरी इच्छा के अनुकूल रहने की प्रतिज्ञा करने वाले को ही वरण करूंगी तू मेरी यह इच्छा पिताश्री से निवेदन कर दे ।”
राजा को पुत्री का अभिप्राय उचित लगा । उसने कई शूरवीर राजाओं और राजकुमारों को आमन्त्रित कर, अपनी पुत्री को प्राप्त करने की शर्त बतलाई । आगंतुक राजादि
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