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________________ तीर्थङ्कर चरित्र देवकन्या के समान रूप गुण सम्पन्न राजकुमारी को प्राप्त करना तो चाहते थे, परन्तु उसके अधीन रहने की प्रतिज्ञा करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ । राजा और गंगा निराश हुए। गंगा का निश्चय दृढ़ था । अपनी इच्छानुसार वर नहीं मिले, तो जीवनपर्यन्त कुमारिका रहने के लिए वह तत्पर थी । अनुकूल वर के अभाव में उसने गृह-त्याग कर बन में साधना-रत रहने का निश्चय किया और एक उद्यान की उत्तम वाटिका में जा कर रह गई । वह अपना मनोरथ सफल करने के लिए साधना करने लगी । राजा शान्तनु का गंगा के साथ लग्न ४१६ भगवान् वादिनाथ के 'कुरू' नाम का पुत्र था | उसका वंश 'कौरव वंश' कहलाया । कुरू के धूत्र हस्ती ने हस्तिनापुर बसाया । हस्ती नरेश की वंश-परम्परा में लाखों राजा हुए। उसमें अनन्तवीर्य नाम का एक राजा हुआ । उसके कृतवीर्य नामक पुत्र था । उसका पुत्र सुभूम नाम का चक्रवर्ती महाराजा हुआ । उसने जमदग्नि के पुत्र परशुराम के साथ युद्ध किया था। इसके बाद कितने ही शुरवीर नरेश इस वंश परम्परा में हुए । उन्हीं में 'शान्तनु' नाम का एक वीर प्रतापी एवं सद्गुणी राजा हुआ । यह न्यायी, प्रजाप्रिय और कुशल शासक था । इतने सद्गुणों के साथ उसमें मृगया का व्यसनरूपी एक अवगुण भी था । वह अश्वारूढ़ हो, धनुष-बाण ले कर शिकार खेलने के लिए वन में चला जाता ! एक दिन शान्तनु आखेट के लिए निकला । उसने एक मृग-युगल पर अपना बाण फेंका, किंतु मृग-युगल भाग कर दूर निकल गया । उसे खोजता हुआ शान्तनु उस उद्यान में पहुँच गया जिसकी एक वाटिका में राजकुमारी गंगा थी । शान्तनु ने एक सुन्दर युवती को देखा, जिसके शरीर पर सादे वस्त्र के अतिरिक्त कोई अलंकार नहीं थे, फिर भी वह देवांगना के समान सुशोभित दिखाई दे रही थी। उसका युवक हृदय आकर्षित हुआ और उसने घोड़े पर से उतर कर आश्रम में प्रवेश किया । राजकुमारी की दृष्टि शान्तनु पर पड़ी । उसने देखा कि एक प्रभावशाली वीर युवक आ रहा है । वह संभ्रमयुक्त खड़ी हो गई और शान्तनु का स्वागत करती हुई एक आमन की व्यवस्था की । शान्तनु को देख कर उसने सोचा- -'यह कोई कुलीन एवं प्रभावशाली युवक है। वीर भी है ।' उसके हृदय में स्नेह ● इसका संक्षिप्त उल्लेख पृष्ठ ४०३ में द्रौपदी के वर्णन में किया जा चुका है । यहाँ 'पाण्डव चरित्र' ग्रंथ के बाधार से कुछ विस्तारपूर्वक किया जा रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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