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पाँच पति पाने का निदान
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अंत में गोपालिका महासतीजी की शिष्या हो गई। अब सुकुमालिका साध्वी, संयम के साथ उपवासादि तपस्या भी करने लगी। कालान्तर में उस आर्या ने, नगर से बाहर उद्यान के एक भाग में, आतापना लेते हुए बेले-बेले का तप करते रहने का संकल्प किया और अपनी गुरुणी से आज्ञा प्रदान करने का निवेदन किया। गोपालिकाजी ने कहा
"हम निग्रंथिनी हैं। हमें खुले स्थान पर आतापना नहीं लेना चाहिए। हमारे लिए निषिद्ध है। हम सुरक्षित उपाश्रय में साध्वियों के संरक्षण में रह कर और वस्त्र से शरीर को ढके हुए, सम्मिलित पाँवों से युक्त आतापना ले सकती हैं । यदि तुम्हारी इच्छा हो,तो वैसा कर सकती हो । नगर के बाहर खुले स्थान में आतापना नहीं ले सकती।"
__ आर्या सुकुमालिका को गुरुणीजी को बात नहीं रुचि। वह अपनी इच्छा से नगर के बाहर जा कर तपपूर्वक आतापना लेने गगी।
पाँच पति पाने का निदान
सुकुमालिका आर्या उद्यान में आतापना ले रही थी। उस समय चम्पा नगरी में पाँच कामी-युवकों की एक मित्र-मंडली थी, जो नीति, सदाचार और माता-पितादि गुरुजनों से विमुख रह कर स्वच्छन्द विचरण कर रही थी ! उनका अधिकांश समय वेश्याओं के साथ बीतता था। वे एक देवदत्ता वेश्या के साथ उस ध्यान में आये। एक युवक वेश्या को गोदी में लिये बैठा था, दूसरा उस पर छत्र लिये खड़ा था, तीसरा गणिका के मस्तक पर फूलों का सेहरा रच रहा था, चौथा उसके पांवों को गोदी में ले कर रंग रहा था और पांचवां उस पर चामर डुला रहा था। इस प्रकार गणिका को पांच प्रेमियों के साथ आमोद-प्रमोद करती देख कर, सुकुमालिका आर्या के मन में मोह का उदय हुवा। उसकी निष्फल हो कर दबी हुई भोग-कामना जगी। उसने सोचा
____ "यह स्त्री कितनी सौभाग्यवती है । इसने पूर्वभव में शुभ आचरण किया था, जिसका उत्तम फल यहाँ भोग रही है। इसकी सेवा में पाँच पुरुष उपस्थित है। यह पांच सुन्दर, स्वस्थ एवं स्नेही युवकों के साथ उत्तम कामभोग भोग कर सुख का अनुभव कर रही है । यदि मेरे तप, व्रत और ब्रह्मचर्यमय उत्तम आचार का कोई उत्तम फल हो, तो में भी आगामी भव में इसके समान उत्तम भोगों की मोक्ता बनूं।"
इस प्रकार निदान कर लिया। फिर वह आतापना-भूमि से पीछे हटी और उपाश्रय में आई। उसके भाव शिथिल हो गए। वह अपने मलिन हुए हाथ, पांव मुंह आदि
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