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________________ प्रद्युम्नकुमार और धूमकेतू के पूर्वभव का वृत्तांत रहने लगे। इतने में नारदजी आ पहुँचे । उन्हें देख कर कृष्ण को प्रसन्नता हुई उन्होंने उनका बहुत आदर-सत्कार किया और अपने पुत्र हरण की बात कर के उपाय पूछा । नारदजी सोच कर बोले- 66 'महात्मा अतिमुक्त मुनि की मुक्ति हो गई, अन्यथा उनसे पूछते । अब कोई सा ज्ञानी भारत में नहीं रहा । में पूर्व महाविदेह जा कर भ. सीमन्धर स्वामी से पूछूंगा और आप से कहूँगा । आप निश्चित रहें ।" कृष्ण और अन्य स्वजनों ने नारदजी को अत्यंत आदर के साथ बिदा किया । वे वहाँ से उड़ कर महाविदेह आये, भ. सीमन्धर स्वामी को वन्दना की और पूछा -- 'भगवन् ! कृष्ण का बालक कहाँ है ?" प्रभु ने कहा- 44 " बालक के पूर्वभव के वैरी धूमकेतु देव ने बालक का छलपूर्वक हरण किया है । अब वह बालक कालसंवर विद्याधर के यहाँ सुखपूर्वक है ।" प्रद्युम्न कुमार और धूमकेतू के पूर्वभव का वृत्तांत भगवान् सीमन्धर प्रभु ने कहा; -- I इसी भरत क्षेत्र के मगध देश में शालिग्राम नाम का एक ऐश्वर्य पूर्ण ग्राम है । उसके मनोरम उद्यान का स्वामी सुमन नामक यक्ष था । उस गाम में सोमदेव नामक ब्राह्मण रहता था उसके अग्निभूति और वायुभूति नाम के दो पुत्र थे । वे कुशल वैज्ञ ब्राह्मण-पुत्र यौवन के आवेग में मदोन्मत्त हो कर भोगासक्त रहते थे । आचार्य श्री नन्दीवर्द्धन स्वामी मनोरम उद्यान में पधारे। लोग महात्मा के धर्मोपदेश से लाभान्वित हो रहे थे। किसी समय वे दोनों वेदज्ञ युवक गर्विष्ट हो, आचार्य के समीप आये और बोले, -- ३९७ 16 'कुछ पढ़े-लिखे हो, या यों ही उपोरशंख हो ? यदि शास्त्र जानते हो, तो शास्त्रार्थ के लिए तत्पर हो जाओ ।" 66 'तुम कहाँ से आये हो” – आचार्य के सत्यव्रत नामक शिष्य ने पूछा । " इस पास वाले शालिग्राम गाँव से ।" " 'अरे भाई ! मनुष्यभव में किस भव से आये हो ?" "हम नहीं जानते कि पूर्वभव में हम कौन थे ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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